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मेरे तुम दिल के अन्दर देख लेना।
कभी ग़म का समन्दर देख लेना।।
ख़ुदा तूफान फिर लाने से पहले।
मेरे घर का भी छप्पर देख लेना।।
मेरे दिल से जुदा जब से हुए वो।
इन्हीं आँखों में पत्थर देख लेना।।
गिरेंगे चाहने वाले भी तेरे।
कभी ज़ुल्फें हटाकर देख लेना।।
गज़ब का ही सुकूँ हैं आशिक़ी में।
कभी तुम दिल लगाकर देख लेना।।
जुदाई ज़ीस्त की हमदम रही है ।
इसे इक बार जीकर देख लेना।।
नशा छाया हैं कैसा ये नज़र में।
ज़रा नैनों से लड़कर देख लेना।।
नहीं गहराई साग़र की पता हो
मेरे दिल मे उतर कर देख लेना।।
तड़प होती हैं क्या आकिब' ये समझो।
कभी सहरा में रहकर देख लेना।।
-आकिब जावेद
7 टिप्पणियाँ
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 12 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह 👌👌👌👌 क्या समंदर है और क्या गहराई । बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंThanks For Visit My Blog.