कविता - स्कूल


कुम्हलाई आँखे 
ताक रही थी,
रास्ता स्कूल का
नाप रही थी।
रंग-बिरंगे चेहरे पे
उदासी बाहर से
झांक रही थी।

फूल खिलने लगे
लालिमा बिखरने लगी
भोर हो गया है,
तिमिर छट चुका है।

खिलखिलाहट से
स्कूल महक गया है,
थोड़ी चुप्पी- थोड़ा शोर
आ गया फिर वो दौर
बाँहो में बाँहे है डाले
धमा चौकड़ी पे है जोर!

-आकिब जावेद


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3 टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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