कविता: गांवों में शहरों का जन्म हो रहा है

बदलते परिवेश में
अटपटे 
भावोवेश में
गाँव का 
बदल रहा
हिस्ट्री,
जियोग्राफ़िया।
खलिहर बैठें
मनो मस्तिष्क
में शून्य लिए
खूब हो रहे
अपराध है।
सड़कों की
बदल रही
लम्बाई 
चौड़ाई
बदल रहा
घर का 
परिमाप है।
गाँवों में
शहर 
का जन्म
हो रहा है!

-आकिब जावेद

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3 टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी सटीक आज गांवों का वो रूप नहीं रहा सौम्य आत्मीयतापूर्ण, गांव में शहर आरोपित हो रहे हैं,या फिर शहर से गांव जाते समय प्रवासी गांववासी अपने साथ थोड़ा थोड़ा शहर लेकर जाते हैं।
    बहुत सुंदर सृजन।

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  3. आपका बहुत बहुत शुक्रियादा❤️🌹

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