सूरज - कविता

छीन लो गम के बादल
रूह में कायम गर्मी
थका हारा है सूरज
मयस्सर नही है सुकूँ
जज्बात उसके गुम है
चक्कर लगाते है दर्द
परेशान है धड़कन
खोने को सोचता है
उठ जाता हर सुबह
दर्द और तन्हाई में
तपता रहता है
शांत सा जलता
ज़माने को रोशन
वो ही तो करता है।।

✍️आकिब जावेद

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