कविता : ज़िन्दगी एक-सा तो नही होती

मुखर जाती है
मुख़ातिब नही होती
बेइंतहाई का आलम
आँखों में अश्क़
दिलों में रश्क़
जुदाई का ग़म
मिलने की जुस्तुज़ू
ज़िन्दगी एक-सा तो नही होती।।

-आकिब जावेद

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ