212 2122 212 2122
चाँद तारा भी देखके तुमको हैरान सा है।।
रुख़ क्यों आसमाँ का ही ये बेज़ान सा है।।
मेरी भी ज़िन्दगी गुज़री परेशानी में ही।।
बादलों के मध्य सूरज भी हैरान सा है।।
ये सुई और धागे में ही तो मोहब्बत है।।
दिल दुखाके भी वो मेरा नादान सा है।।
इस हवा में तो साँसे लेना ही अब दूभर है
ये इंसां भी शज़र काटके परेशान सा है।।
ज़िन्दगी में ख़ुदा सबकी कमी को सुनेगा।।
वो फरिश्तों में भी सबका निगहबान सा है।।
-आकिब जावेद
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