गर होश में होते- नज़्म

गर होश में होतें,
ये शीशे के मकान न बना डालते!

अपने दिल में ही यूं हम,
ये उल्फत के तूफान न उठा डालते!

इक तेरी याद थी,आंखों में भरी,
यूं ही नही,बात शरे राह न सुना डालते!

नादिया,पर्वत,झील,सब बेमानी है तेरे सामने,
यूं ही नहीं ,दिल को तेरे सामने भुला डालते!

रब तेरी कसम,तुझसा सुंदर नही दूजा,
यूं ही नही,उसके सामने तुझे भुला डालते!

सब पूछा करे मुझसे,ये उल्फत का सबब,
यूं ही नही,लोगो के सामने जूठ बता डालते!

कुछ तो है,बातो में मगर,
यूं ही नही,हम दिल का हाल बता डालते!

तेरी किस्मत में नही कोई आकिब'
यूं ही नही,सबको ही ख़्वाब बता डालते!

-आकिब जावेद

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