चोरी की ग़ज़लों को पढ़ तू उधर गया

चोरी की ग़ज़लों को पढ़ तू उधर गया
सब  ढूँढते रहे महफ़िल में किधर गया

आयी हवा मेरे ज़िन्दगी में भी इस तरह
वो अब गयी जहाँ जहाँ मै भी उधर गया

आँखों का उसके मै भी कभी होता था सुकूँ
नज़रे  मुझे  ही ढूँढा करती थी किधर गया

सोचा ये मैंने भी कुछ गुफ़्तुगू करूँगा अब
दिल में ये सोचते  ही न जाने किधर गया

हालात मुल्क़ के अभी अपने कहाँ बदले
अपना शहर तो देखते ही अब किधर गया

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