कविता : मोबाइल



जीवन कितना बढ़िया था,
गाँव घर घर लगतीं चौपाले थी
बच्चो की खिलती किलकारी थी
आपस में खूब हंसती नारी थी
लेकिन जबसे,
मोबाइल हाथ में आ गया
जीवन आसान तो हो गया
लेकिन  देखो अब दुनिया को,
लोग चिट्ठी पाती को भूल गये
वो दूरियां भी अब दूर गयी,
मज़बूरियां भी कोई ना रही
देखों अब यँहा,
याद ना करने का कोई बहाना चलेगा
सबको साथ मिलकर रहना पड़ेगा
चाहे हो कोई इस छोर से उस छोर पे
दुनिया के सब कोने में इसका नेटवर्क मिलेगा
भेजो चाहे मैसेज,चाहे लगालो फ़ोन किसी को,
सब इस में व्यस्त हैं,कई तो इससे त्रसत हैं
नही किसी के पास अब कोई काम यँहा
सब कर रहे अब केवल आराम यँहा
दूरियाँ इससे नही भाती हैं, दिनभर मोबाइल लिये रहते हैं
एक घर के छत के नीचे सभी देखो कितने दूर दूर रहते हैं
सबको साथ लाकर भी इसने कितना दूर कर दिया
सामान्य जिंदगी से दूर इंसान काल्पनिक दुनिया में घिर गया
समय रहते ही जाग जाओ,
खुमारी अपनी भूल जाओ,
वर्ना वो दिन दूर नही,
हाथ में केवल मोबाइल रहेगा 
और अपने सारे दूर रहेगे।।


®आकिब जावेद


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