ज़िन्दगी में कोई रहनुमा ना हुआ।।ग़ज़ल।।

2122  1212 22(112)

मेरा तुझसे  कभी यूँ  राब्ता न हुआ
ज़िन्दगी में कभी ये वाक़या न हुआ

तुम जो  कहते  थे तुमसा न देखा
ज़िन्दगी  में  कभी हादसा न हुआ

मेरी बातों को  दिल में मत लेना
ज़िन्दगी में कोई रहनुमा न हुआ

इक  कहद  पड़ी  यूँ  वीराने  में
ज़िन्दगी में कोई हमनवा न हुआ

है  अँधेरा  यूँ  अब  चारो  तरफ
ज़िन्दगी में ऐसा माज़रा न हुआ

बीनाई मेरी तड़फ रही दीदार को
मदीने वाले से कभी राब्ता न हुआ

-आकिब जावेद

कहद--अकाल /सूखा

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