एक शम्मा जलाया था तेरे मुहब्बत का हमने
उस दिन के इंतज़ार में अब जाँ मचलती है।
मेरे महबूब तू आ जा अब मेरे सामने
वो सच्ची मुहब्बत अब आँखों में झलकती है।
खुद में खोये मदहोश होये दिले आरज़ू में रोये
तेरी महफ़िल में अब हमारी मुहब्बत सिमटी है।
ख्वाबो में सोचें, बाहों में लिपटे एक जहाँ चले हम
हकीकत में पास आने को ये साँसे अब गुज़रती है।
उम्मीदे अब तन्हा दिल से गुज़रती है अब
सदा पास आने को आकिब'ये कहती है।।
®आकिब जावेद
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