एक चाँद दूजे को निहारता है
क्या पता तुझे क्या गुज़री है।।
सच कहना अब मंहगा है यहाँ
झूठ की यहाँ अब बोली लगी है।।
बेखुदी में खोकर,खुदा को भूल गये
खाया ठोकर,याद आया खुदा भी है।।
जर्रे जर्रे ने तुझको पाया है,चाहा है
हर शय अब तुझे पाके यहाँ महकी है।।
होश में नही हम,डूबे साकी तेरे पैमाने में
जिंदगी की कहानी में अब यही रवानी है।।
समंदर को भी चाह है अब किनारों की
समंदर ने कई राते तुफानो में गुज़ारी है।।
जुबां की हिफाज़त अपनी रखना तुम सदा
चुगलखोरों की जुबां यहाँ हमेशा फिसलती है।।
आँखे है तो दीदार भी होंगे,लबो से इज़हार भी होंगे
दो जानो के दरमियाँ ये दूरियाँ कितनी अखरती है।।
मिलके यूँ बिछड़ना उसका,घड़ी थी इम्तिहान की
हर पहर गुज़रता गया,उसको याद है हम तसल्ली है।।
®आकिब जावेद
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