ज़िन्दगी में चलती है यूं आंधियां कभी कभी

ज़िन्दगी में चलती है यूं आंधियां कभी कभी
उड़ा के ले जाती है ऐसे मर्ज़ियाँ कभी कभी।।

सफ़र दर सफ़र गुज़रता जा रहा ये कारवाँ

तुम बसा लो मुहब्बत का आशियाँ कभी कभी।।

अजीब सी उलझनें उलझी हुई है ज़िन्दगी में

अब कोई रख जा कहानियाँ कभी कभी।।

वो बैठे बैठे देख रहा ज़िन्दगी में सब्ज़ बाग़

गुल उड़ा के ले गईं हैं तितलियाँ कभी कभी।।

सुना है वो सुनता नही अब कुछ मुहब्बत में

आते जाते रख जा निशानियाँ कभी कभी।

तमन्नाओ का अम्बार लागए तुम बैठे हो

ज़िन्दगी में जियो अपनी मर्ज़ियाँ कभी कभी।।

मेरे अश्क़ मुझसे ही अब रोने का सबब पूछे

आकिब’दे दे इश्क़ की अर्ज़ियाँ कभी कभी।।


-आकिब जावेद

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2 टिप्पणियाँ

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  2. ये तो हमारी खुशकिस्मती है आ. जी जो आपको हमारी रचना पसंद आयी।हम ह्र्दयतल से आपका आभार व्यक्त करते है एवं आपको आश्वस्त करते है आपको इसी तरह अच्छी रचनाये उपलब्ध करवाए।आपसे विन्रम अनुरोध है कि मेरे ब्लॉग को शेयर करे एवं रचनाओं को अपने सखी दोस्तों से शेयर करे।धन्यवाद💐💐

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