देशवासियों को ईद उल अजहा की बहुत मुबारकबाद।आइए लेख से जानते है ईद उल अजहा

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ईद-उल-अज़हा को बकरीद या कुर्बानी की ईद के नाम से भी जाना जाता है। यह इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहारों में शामिल है। बकरीद हमें यह संदेश देती है कि सच्चा धर्म वही है, जिसमें त्याग, सच्चाई और मानवता का भाव निहित हो। इस दिन मुस्लिम समुदाय कुर्बानी की रस्म निभाकर उस ऐतिहासिक क्षण को याद करता है जब पैगंबर हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह के आदेश पर अपने पुत्र की बलि देने का निश्चय किया था।

इस्लामी पंचांग के अनुसार, ईद-उल-अज़हा का त्योहार ज़ु अल-हज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है, जो इस्लामी वर्ष का 12वां और अंतिम महीना होता है। इस वर्ष
ज़ु अल-हज्जा 30 दिनों का है और आज 7 जून 2025 को बकरीद का पावन पर्व पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है।

ईद-उल-अजहा क्या है?

इस्लाम में दो प्रमुख ईदें (उत्सव) हैं: ईद-उल-फितर, जो रमजान के पवित्र महीने के पूरा होने का प्रतीक है; और  ईद-उल-अज़हा , जो बड़ी ईद है, जो वार्षिक हज यात्रा के पूरा होने के बाद कुर्बानी (बलिदान) के समय मनाई जाती है।

यद्यपि ईद-उल-अजहा का हज यात्रा से कोई सीधा संबंध नहीं है, फिर भी यह हज की समाप्ति के एक दिन बाद आता है और इसलिए समय के लिहाज से इसका महत्व है।

ईद-उल-अज़हा का पर्व पैगंबर हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की आज़माइश से जुड़ा हुआ है।धार्मिक मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने उनकी निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए आदेश दिया कि वे अपने सबसे प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी दें। एक रात हज़रत इब्राहीम को सपना आया, जिसमें उन्हें अपने बेटे की बलि चढ़ाने का निर्देश मिला. उन्होंने इस आदेश को अल्लाह की इच्छा मानते हुए पूरी आस्था और समर्पण से उसे पूरा करने का निश्चय किया।

अल्लाह का यह आदेश पैगंबर इब्राहिम की अपने भगवान के आदेश का पालन करने की इच्छा और प्रतिबद्धता का परीक्षण था,बिना किसी सवाल के। इसलिए, ईद-उल-अज़हा का मतलब है बलिदान का त्योहार।

बकरीद का धार्मिक महत्व

ईद-उल-अज़हा, जिसे बकरीद भी कहा जाता है, इस्लामी पंचांग के 12वें महीने जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाती है।यह पर्व हज यात्रा के समापन का प्रतीक भी है, जिसमें दुनियाभर से लाखों मुसलमान मक्का (सऊदी अरब) जाकर इस्लाम के पांचवें स्तंभ हज को पूरा करते हैं।बकरीद के दिन दी जाने वाली कुर्बानी भी इस्लाम के महत्वपूर्ण कर्तव्यों में गिनी जाती है।

कुर्बानी के नियम और भावना

इस्लाम में कुर्बानी केवल जानवर की बलि देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक समर्पण, त्याग और भक्ति की भावना को दर्शाती है। कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है — एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों को, दूसरा रिश्तेदारों और पड़ोसियों को, और तीसरा हिस्सा स्वयं के लिए रखा जाता है।यह प्रथा समाज में सहयोग, समभाव और भाईचारे को बढ़ावा देती है।

भारत में बकरीद की परंपराएं

भारत में बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय सुबह-सवेरे ईदगाह या मस्जिदों में विशेष नमाज़ अदा करता है। नमाज़ के बाद कुर्बानी की रस्म अदा की जाती है और मांस को तयशुदा हिस्सों में बांटकर जरूरतमंदों तक पहुंचाया जाता है।इस शुभ अवसर पर लोग नए कपड़े पहनते हैं, स्वादिष्ट व्यंजन और मिठाइयां तैयार की जाती हैं और दोस्तों व रिश्तेदारों का स्वागत गर्मजोशी से किया जाता है।

देश के आधार पर, ईद-उल-अज़हा का जश्न दो से चार दिनों तक चल सकता है।  ईद की नमाज़ (ईद की नमाज़) के बाद कुर्बानी  (बलिदान) की जाती है, जो ईद की सुबह नज़दीकी मस्जिद में सामूहिक रूप से अदा की जाती है।

परंपरागत रूप से, यह दिन परिवार, मित्रों और प्रियजनों के साथ मनाया जाता है, अक्सर नए या सबसे अच्छे परिधान पहने जाते हैं और उपहार दिए जाते हैं।

आकिब जावेद

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