कविता : चौपालें

चौपालें लगती है अक्सर 
गोल चबूतरे में जिसमे लगा होता है विशाल वृक्ष
जिसका स्वयं का इतिहास लम्बा होता है 
सारा भूगोल,अर्थशास्त्र छिपा होता है इन गोल चबूतरे में
इसी चबूतरे में होती है बाते देश विदेश की
मूछों की अकड़ हो या गांव की परेशानियां
अक्सर समाप्त हो जाती है आकर इन चौपालों में।

चौपालें सुनाती है किस्से 
खोया हुआ अतीत पाने की जद्दोजहद
बिसरी हुई बातें,मुस्कान सब कुछ है इन चौपालों में।

गुम हो गई है चौपालें कहीं वर्तमान में
खो गया है अतीत एवं भविष्य
इक्कसवीं सदी की चका चौंध ने 
गांवो तक फैला लिया है पैर 
रील्स की इस सदी में ढूंढ रही हैं 
चौपालें अपना अतीत -वर्तमान एवं भविष्य।

आकिब जावेद 

Pics साभार: गूगल 

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