कविता - आँख

आंखे
ईश्वर का दिया
मनुष्य को बहुमूल्य तोहफ़ा,
जो 
करती हैं मार्मिक बातें
प्यार हो या अंतर्द्वंद
वो भली-भांति 
समझती हैं सब
भूख हो 
या
प्यास का एहसास
दुख और सुख का आभास
करे कोई नेक कार्य
या  अत्याचार
देखती हैं सब
बिना कुछ कहे
बिना कुछ सुने
क्या करें
वो तो आंख है
उसे  केवल देखने का 
अधिकार है
बोलने से ज्यादा।

-■आकिब जावेद■

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20 टिप्पणियाँ

  1. आँखों की अपनी भाषा है. एक ऐसी भाषा जिसको जुबान नहीं होती. बहुत सुंदर रचना. लाजवाब.

    new post- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

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  2. नैनो की भाषा पर प्रकाश डालती शानदार ृरचना

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  3. लाजबाब काव्य,आपकी लेखनी का जादू मन को मोहित कर गया।

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  4. बहुत ही खूबसूरत लफ़्ज़ों में नयनों का चित्रण किया है

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार रचना।
    आँखे बेज़ुबान कितना बोलती है।

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  6. वो तो आंख है
    उसे केवल देखने का
    अधिकार है
    बोलने से ज्यादा।
    ---//---
    बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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