छोटी कविता

घबराहट
हड़बड़ाहट
बेचैनी है
मयस्सर नही
सुकूँ उसे
जिसने देख के
भी किया अनदेखा
किसी के 
पैरों के छाले
किसी के 
मुह के 
निवाले!

#akib 

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2 टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०५-२०२०) को 'बादल से विनती' (चर्चा अंक-३७१०) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. मयस्सर नहींं सुकूं...
    जो इनके पैर के छाले और छूटते निवाले से दुखी न हो उसे सुकून कहाँ से मिलेगा...
    बहुत सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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