मजदूर दिवस पर एक कविता

*मजदूर दिवस की बहुत बधाई*

मन में कुछ ठाने,
झोला,झंडी ताने,
कपड़े वही पुराने,
चला जा रहा कमाने!

परिवार की तमाम ख्वाहिशो को,
जिम्मेदारियों से खुद को बांधे,
चला जा रहा कमाने!

कपड़े नही ढंग के तन में,
परेशानी हैं घर की सामने,
जाने को मन बिल्कुल ना माने,
फिर भी,
चला जा रहा कमाने!!

घर,परिवार,देश से दूर,
बीमार माँ-बाप से दूर,
प्यारे पत्नी बच्चों से दूर,
दिल बेक़रार और परेशान,
गरीबी,बेरोजगारी से हारे,

गरीबी में नही दिन गुजरता,
नही हैं, घर में कुछ खाने को,

कोई ना कोई आये दिन बीमार,
पैसे नही दवा कराने को,
जितना कमाये,उससे ज्यादा खर्च,
हो जाते खूब परेशान,

कुंठित,व्यथित मन में सोचे,
गर होता यंहा कुछ कमाने को, सरकार करती कोई इंतज़ाम,
होती फैक्ट्री,मिल या रोजगार,
ना जाना पड़ता घर परिवार से दूर,
यंही पर कुछ कमाते!

लेकिन अब तो हैं, मज़बूरी,
मन हो मायूस या कि हो उदास,
खातिर अपने परिवार को पालने,
वह चला जा रहा कमाने!!

-आकिब जावेद

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