गाँधी जयन्ती कविता

गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार
हो रहा है कितना देखो अत्याचार
जात-धर्म से हो गए,सब यहाँ लाचार
ईमान का भी हो रहा खूब व्यापार
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


लूट-पाट,दंगो की दुकानें चल रही
बहू-बेटियों की अस्मिता लुट रही
मंदिर-मस्ज़िद भी फल-फूल रही
इन सबसे भरा हुआ है अख़बार
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


साम-दाम दंड भेद,गाँधी नाम रहे
नैतिकता को अपने सब त्याग रहे
गाँधी के वचन तो सबको याद रहे
मनाते इसे जैसे हो कोई त्यौहार
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


करूणा अहिँसा तेरा रूप रहा
अंग्रेज़ो के सामने तू न डिगा
तेरे उसी रूप क़ी है दरकार
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


-आकिब जावेद




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1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-10-2019) को   "नन्हा-सा पौधा तुलसी का"    (चर्चा अंक- 3478)     पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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