हाइकु

वर्षा ऋतु हूँ
अम्बर में रहूँ मैं
धरा महके

बहती जाए
एक छोर से दूजा
अंत नहीं है

पास होती हूँ
खिल उठते सब
कहते दिन

#akib

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