*नज़्म*
तेरे ख़ामोश होठों पर
मेरा ही नाम होता था
ये तब की बात है जबकि
कोई तुझको सताता था।
बहुत परवाह करते थे हम
इक़ दूजै की पर लेकिन
मुसीबत के दिनों में
यार तेरा ख्याल आता है।
तेरे खामोश होठों पर......
जो संग-संग में बिताये थे
वो लम्हें याद आते हैं।।
गली में ओर मोहल्ले में
सभी दुश्मन हुए मेरे
वो भूले ज़ख़्म याद आकर
मुझे एहसासे-गम देता
तेरे खामोश...........
जरा कुछ याद तो कीजे
मोहब्बत से भरे वो दिन
ज़माने के सितम ऐसे
हुए अपनी मोहब्बत पर
भुला बैठें हैं हम अपनी
वो कश्मे ओर वादों को
इधर में मर रहा हूँ याद में
लेकिन उधर जग मुस्कुराता है
तेरे खामोश........
तेरे ख़ामोश......
-आकिब जावेद
11 टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत आभार आ.सर सादर नमन
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 7 अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर नमन आ. जी💐💐 मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका ह्रदयतल से आभारी हूँ आपका💐💐
हटाएंरचनाकार के दुखी मन से निकली रचना को पढ़ कर पाठक को सकूं मिलता हो तो समझो रचना बेहद कमाल है.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर मेरा पहलीबार आना हुआ है... और आपकी ये रचना बेहद सुंदर लगी.
कई जगह शाब्दिक त्रुटियाँ हैं उनको देख लें.
आप भी मेरे ब्लॉग पर आयें -- कायाकल्प
अपना अमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार जी💐💐
हटाएंबहुत ही शानदार नज़्म ।
जवाब देंहटाएंअपना अमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार जी💐💐सादर नमन
हटाएंहर पंक्ति गहनता लिये हुये ...सटीक एवं सार्थक लेखन ।
जवाब देंहटाएंअपना अमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार जी💐💐सादर नमन
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
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