🏵️ *कान्हा*🏵️
मन प्रफुल्लित अब होत बलिहारी
गलियन गलियन कूँचे किलकारी
नैनन से तुम अब करिहौ बातै
श्याम शलौने गीत सुनाके
मोरे मनवा में तुमने डाका डाला
ऐसे गया अब वो हरसा के
पकड़े मोरे वो कलाई रसिया
मन इतराय अब रह रह के
जानौ अब ना कौनो बतिया
वो गये है अब प्रीत रचा के
प्रेम में उनके तड़प रही हूँ
विरह की अब ना कटे रतिया
पूनम रात्रि अब वो शर्माने
चन्द्र देखूं यू देखूं कृष्णा
मन में उठती है अब तृष्णा
मुझ को कुछ ना समझ आए
प्रीत पराई तुम्ही जानौ
मैं तुम्ही को सजना मानौ
मोही तो कुछ ना देई सुझाई
सब रूपन मा तुम्ही गोसाईं।।
🎇 *आकिब जावेद, बाँदा*
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