🎉सुख़न-ए-अदब🎉श्रृंखला की पहली पेशकश🌸
🏵️ Lucky Faruqui साब की शानदार ग़ज़ल पेश खिदमत है🏵️
बाम-ए-फ़लक को चूमते दीवार-ओ-दर कहाँ .
हम जैसे बे-घरों के मुक़द्दर में घर कहाँ .
بام فلک کو چومتے دیوار و در کہاں ۔
ہم جیسے بے گھروں کے مقدّر میں گھر کہاں ۔
तकलीफ क़हक़हों का सबब बन गयी है आज .
इस बे-हिसी के दौर में ग़म का असर कहाँ .
تکلیف قہقہوں کا سبب بن گئی ہے آج ۔
اس بےحسی کے دور میں غم کا اثر کہاں ۔
पलकों पे रक्खे दर्द के पौधों को क्या ख़बर .
आँखों के रेगज़ार में पानी का घर कहाँ .
پلکوں پہ رکّھے درد کے پودھوں کو کیا خبر ۔
آنکھوں کے ریگزار میں پانی کا گھر کہاں ۔
शबनम की सीपियों से अदावत है धूप को .
फूलों की पत्तियों पे अब उक़्द-ए-गुहर कहाँ .
شبنم کی سیپیوں سے عداوت ہے دھوپ کو ۔
پھولوں کی پتیوں پہ اب عقد گہر کہاں ۔
इक नूर की लकीर है साड़ी के अंदरून .
चांदी की तागड़ी में तुम्हारी कमर कहाँ .
اک نور کی لکیر ہے ساڑی کے اندرون ۔
چاندی کی تاگڑی میں تمہاری کمر کہاں ۔
जाड़े की रात और तेरे जिस्म का लिहाफ़ .
"होती है आज देखिये हमको सहर कहाँ" .
جاڑے کی رات اور تیرے جسم کا لحاف۔
"ہوتی ہے آج دیکھئے ہمکو سحر کہاں" ۔
कोठे की सीढ़ियों से उतरता हुआ ख़तीब .
कहने लगा ये मुझसे कि हज़रत इधर कहाँ .
کوٹھے کی سیڑھیوں سے اترتا ہوا خطیب ۔
کہنے لگا یہ مجھسے کی حضرت ادھر کہاں ۔
बाम-ए-फलक - आसमान की छत, मुक़द्दर - भाग्य, रेगज़ार-रेगिस्तान, अदावत - दुश्मनी, उक़्द -राज़, गुहर - मोती, ख़तीब - धर्मोपदेशक
- Lucky Faruqui Hasrat
2 टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-08-2019) को "जानवर जैसा बनाती है सुरा" (चर्चा अंक- 3434) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-08-2019) को "जानवर जैसा बनाती है सुरा" (चर्चा अंक- 3434) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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