1222 1222 1222 1222
इबादत करते रहे वो बन गए ज़िन्दगी मेरी
वो हमनशी बन कर आए ले गए बन्दगी मेरी
तलाशता फिर रहा मै,खुद की जमी अपनी
मुहब्बत के राहो में अब दिख रही बेबसी मेरी
उसे लगता है कि उसे भूल गया हूँ मैं
काश आकर झाख सकते दिल की उदासी मेरी
एक उलझन में घिरा हुआ ताकू चाँद तारो को
पास आने को बेताब सी देखी वो चाँदनी मेरी
चाहा बहुत है अपने ज़िन्दगी में उनको
मुझे घेरे हुए है हर तरफ से बे-रूख़ी मेरी
इशारो इशारो में अब सारी बाते किए हो
नही याद आती क्या तुमको दिल्लगी मेरी
सफर दर सफ़र रंवा है मेरी रूह में ऐसे
आकिब'इंतज़ार में है अब कोई ख़ुशी मेरी
-आकिब जावेद
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