दिल में मेरे अब कुछ ज़ोर ना था।।ग़ज़ल

दिल में मेरे अब कुछ ज़ोर ना था
ये जो घर अब किसी और का था

हमने तो चाहा था अब सिर्फ उसे
ये जो हमसफ़र किसी और का था

मुकद्दर  में ना  था वो मेरा चारागर
वो  जो  दिलदार  किसी और का था

दिलो तसव्वुर में बसाया था यूं जिसे
वो तलबगार अब किसी और का था

खाखगर को जो दिल की बाते बताई
वो जालिम बेवफ़ा किसी और का था

ख्वाबो ख्यालो में कल जो आया था पास
महसर में अब खड़ा वो किसी और का था

मेरे दिल में भी आये अब थोड़ी सी रानाई
'आकिब'इस दुनिया में वो किसी और का था

®आकिब जावेद

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