जर्रे जर्रे में हैं साया तेरा,लगता हर बार नया है ।।ग़ज़ल

जर्रे जर्रे में हैं साया तेरा,लगता हर बार नया है
मुश्किलात का किया सामना,मंज़र यूँ नया है

तकलीफों को भूलते,फिर दर्द हर बार नया है
ज़ख्म भी देते हैं, लेकिन दवा हर बार नया है

हाथो में हाथ उनके,हाथ यूँ साथ हर बार नया है
बदलते रहते रिस्ते अक्सर,रिस्ता हर बार नया है

नमाज़ों में सर को झुकाते,दुआ हर बार नया है
सजदों में लज़्ज़त ना थी,सज़दा हर बार नया है

मुखौटा को "आकिब"तुम पहचान ही ना पाये
सब चेहरों में अक्सर मुखौटा हर बार नया है।।

-आकिब जावेद

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