नील गगन को छूना चाहता है!!ग़ज़ल

मन कुछ ढूंढता हैं, मचलता है
नील गगन को छूना चाहता है

सुनहरे बादलो के बीच जाकर
भू की दूरी को ऐसे मापता है

कोई पत्थर दिल हुआ है शायद
तकलीफों से यूँ मुह मोड़ता है

मंज़िलो को पाना आसान हैं यहाँ
फिर किसे पाने को ये सोचता है

मुक़द्दर के सिकंदर तो बन सकते हो
तो फिर मुक़द्दर से ही क्यू लड़ता है

ख्वाबो की ताबीर ख्वाबो में पूछो
हकीकत में अब क्यू दिल टूटता है

हैसियत बताने से "आकिब"नही चूकते
जिंदगी में मेरे अब क्यू ज़हर घोलता है

©आकिब जावेद

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