उधेड़बुन में घिरा हुआ अफसाना बनाता हूँ।।ग़ज़ल

उधेड़बुन में घिरा हुआ,अफ़साना बनाता हूँ
मेरा ना हुआ कभी,उनको दीवाना बनाता हूँ

ये दुनियादारी हमको नही आती जमाने में
जमाने से अलग किरदार अपना बनाता हूँ

वो नज़रे इनायत रही हमपर सदा उनकी
क़ातिलाना अंदाज़ को यूँ आईना बनाता हूँ

हाल-ए-दिल कभी कह ना पाये उनसे
ना चाहने का तोहमत भी झूठा बनाता हूँ

झूठ,फरेब,धोखा ये सब रही फ़ितरत उनकी
महकता हुआ मुहब्बत का कुनबा बनाता हूँ

मिट्टी के शरीर को ख़ाक में मिल जाना हैं
यूँ आसमान पे जाने का रास्ता बनाता हूँ

सारे रंगों को अब कैनवास में उतारता हूँ
फ़क्त सिर्फ तेरा ही अब नक़्शा बनाता हूँ

नादाँ सा दिल हैं, नही दुःखाता किसी का यूँ
सबको "आकिब" दिल का हिस्सा बनाता हूँ

-आकिब जावेद

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