कर्मो से किस्मत सुधारी जा रही हैं!!

ये हिन्दू ये मुसलमा कहते सभी
अब इंसानियत हारी जा रही हैं।।

हाथ की लकीरों में इतना दम नही
कर्मो से किस्मत सुधारी जा रही हैं

वो बादल की ख़ुमारी छाई उसपर
सोचा सब पर भारी जा रही हैं

जिंदगी गुलाम नही अब किसी की यहाँ
अपनी जिंदगी क्यू ना सुधारी जा रही हैं

हालात मुश्किल सही अब ईमान तो हैं
जिंदगी बेईमानो से क्यू हारी जा रही हैं

युसूफ पे ज़ुलैख़ा लूटी जा रही हैं
और खुद ही नज़रो से गिरी जा रही हैं

बूढ़े पेड़ो के छल्लो से पूछो ये समय का सिलसिला
कब से एक जगह पे ही समय गुज़ारी जा रही हैं

®आकिब जावेद

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