अपनी नैतिकता हमने यूँ खो दी हैं
कितने नीचे अब हम गिर गये हैं
मजहब,जात में इतने बट गये है
हम इंसान अब कहाँ रह गये हैं
टूट कर हम ऐसे बिखर गये हैं
सर्वघर्म समभाव का भाव,
अब कहाँ रह गया हैं।
आँखों का पानी मर गया हैं,
दिल भी पत्थर बन गया हैं,
इंसानियत को शर्मशार किया हैं,
खुद को अब हैवान बना दिया हैं
क्या मोहब्बत में भी बंदिशें हैं?
अब लोगो के दिलो में रंजिशें हैं
मोहब्बत को ऐसे क्यू बाँट दिया हैं?
सियासतदाँ ने खूब सियासत किया हैं
मजहब,जात में इतने बट गये हैं
हम इंसान अब कहाँ रह गये हैं।।
®आकिब जावेद
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