दिसम्बर

छंद मुक्त रचना: दिसंबर

साल का अंतिम महीना हूँ
महीनों का मैं नगीना हूँ
गर्मी को मैं देता मात
जाड़े की लाता सौगात
काम धाम सारे छोड़कर
रजाई में अब बैठो ओढ़कर
आग जलाओ चारों ओर
बिना कुछ भी अब सोच कर
मूंगफली का महीना हूँ
हां मै दिसम्बर महीना हूँ
रजाई छोड़ने का मन ना हो
सुबह कँही जाने का दिल ना हो
ओस की बरसात हो
कड़कड़ाते अब दांत हो
हाड कपाती सर्दी हो
कपड़ो से लदा इंसान हो
साल का अंतिम महीना हूँ
महीनों का मैं नगीना हूँ
हां मैं दिसम्बर महीना हूँ।।

®आकिब जावेद

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