ग़ज़ल!!खंजर छुपाये बैठा कोई जान मुश्किल में हैं!!

गनीमत हैं कि वो फूल अभी खिला नही हैं
खंज़र छुपाये बैठा कोई जान मुश्किल में हैं।।

याद आती हैं, दुआएँ अब माँ की मेरी
आज जान मेरी कितनी मुश्किल में हैं।।

बदसलूकी की यहाँ नही कोई सज़ायाफ्ता
लड़कियों के हालात यहाँ यूँ मुश्किल में हैं

बात बुतकदों में बड़ी ज़ोर से चल रही थी
बंदा परवरदिगार अब यहाँ महफ़िल में हैं।।

करना है अब दूर ये जात पात धर्म की बंदिशें
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं।।

हवाएं नफ़रतों की बह रही यूँ मेरे देश में
देखना हैं अब जोर कितना बुज़दिल में हैं

ये मंदिर मस्जिद ये अगड़ा पिछड़ा अब कब तलक
शर्मशार हुई इंसानियत धर्म की बंदिशें दिल में हैं।।

बदगुमानी का डर ना रहा अब कोई सियासत में
वोट की रोटियाँ सेंकने तक ही ये दाखिल में हैं।।

®आकिब जावेद

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