फ़िक्रों अदा ले आये हैं ग़ालिब के घराने से! : ग़ज़ल

छूट गया हाथ उसका एक उसके जाने से,
टूट गयी उम्मीद सारी, उम्र के सिरहाने से।

महबूब ने जो बुने हैं चाँद तारे मेरे दामन में
अब सँवर के दिखेगा हुस्न मेरे दिखाने से।

चन्द सांसों की भीड़,उसपे गम का मेला ये,
ज़िन्दगी थकी कब है, हमको आज़माने से।

नाउम्मीदी,बेवफ़ाई,दर्द आँशु गमो की खिर्जिया
अब यही मिलेगा बस दिल के इस खजाने से।

अब तेरी याद में यूँ हम ऐसे दिन बिता देंगे
फ़िक्रो अदा ले आये हैं,ग़ालिब के घराने से।

इन गर्दिश की आँधियों में हौसला बनाये रख
इश्क की बहारे लौटती हैं, फिर मुस्कुराने से।

मुफ़लिसी का जीवन,सोचते ख्वाब महलो के
नही चुकती दुनिया कभी हैसियत बताने से।

प्रेम से जीवन जिया,चाहत भी खूब रही
महबूब दूर रहा हमसे,हमेशा पास आने से।

डोर प्यार की ऐसे ही जपते रहना सदा
मिलते हैं आकिब'रिस्ते ऐसे ही निभाने से।।

®आकिब जावेद


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ