कविता भेड़ें

खेतों में चरता 
भेड़ो का झुंड,
वहीं पास में बैठा चरवाहा
मुस्कुरा रहा है देखकर
जिधर चाहो 
उधर हांक दो 
भेड़ो को।

अस्तित्व विहीन
झुंड अक्सर
ऐसे ही सधता है
जैसे साधने से 
एक भेड़
सध जाती हैं
सारी भेड़ें।

आकिब जावेद

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