बह्र क्या है? – ग़ज़ल की लयात्मक आत्मा का परिचय

बह्र क्या है? – ग़ज़ल की लयात्मक आत्मा का परिचय
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जब भी हम कोई ग़ज़ल पढ़ते या सुनते हैं, तो उसके बोलों में बहती एक मधुर लय हमें सहज ही आकर्षित करती है जो हर शेर में समान रूप से बहती है। यह लय मात्र शब्दों की सुंदरता नहीं होती, बल्कि उस सुस्पष्ट ढांचे की देन होती है जिसे "बह्र" कहा जाता है।

बह्र: ग़ज़ल की पूर्व-निर्धारित लय
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बह्र किसी भी ग़ज़ल की वह पूर्व निर्धारित लय या धुन है, जो पूरी ग़ज़ल में एक समान बनी रहती है। यह लय विशेष प्रकार के ध्वनि-खण्डों (syllables) की आवृत्ति, पुनरावृत्ति, मध्यांतर, और तकरार के माध्यम से निर्मित होती है। यह केवल संगीतात्मक नहीं बल्कि छंदात्मक अनुशासन भी है — जो ग़ज़ल को एक काव्यात्मक आभा और स्वर-लालित्य प्रदान करता है। सरल शब्दों में कहें तो बह्र वह संगीतात्मक आधार है जिस पर ग़ज़ल की इमारत खड़ी होती है।
 
अरूज़, छंद और उनका शास्त्र
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जिस शास्त्र में बह्र या छंद का ज्ञान दिया गया है उसे:

•उर्दू में अरूज़,

•हिन्दी में छंद शास्त्र,

•संस्कृत में पिंगल शास्त्र,

•और अंग्रेज़ी में Prosody कहा जाता है।

हिन्दी का छंद शास्त्र मूलतः संस्कृत के पिंगल शास्त्र पर आधारित है जो तकरीबन तीन हज़ार साल पुराना है। वहीं, उर्दू का अरूज़, जिसका उद्भव पर्शिया (ईरान) में माना जाता है, लगभग 1800–1900 साल पुराना है।

बह्रों का जन्म और विकास
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अरूज़ या छंद के विद्वानों ने केवल छंदशास्त्र का आविष्कार ही नहीं किया, बल्कि लगभग सभी मौलिक बह्रों का भी निर्माण किया। इसलिए आधुनिक काल में नई बह्रों का आविष्कार लगभग नगण्य है।

चूँकि हम यहाँ ग़ज़ल के सन्दर्भ में चर्चा कर रहे हैं, इसलिए हमारा दायरा विशेषतः अरूज़ तक सीमित रहेगा।

अरूज़ क्या है?
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किसी ग़ज़ल या उसके शेर के वज़्न और बह्र को जांचने और समझने के लिए जो पैमाने, नियम, और क़ायदे तय किए गए हैं, उन्हें ही अरूज़ कहते हैं।
अरूज़ का सबसे उपयुक्त शाब्दिक अर्थ है – स्तंभ (सतून)। जैसे किसी ख़ेमा या तंबू को खड़ा रखने के लिए स्तंभों की आवश्यकता होती है, उसी तरह एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए अरूज़ रूपी स्तंभों की ज़रूरत होती है।

अरूज़ का जन्मदाता: ख़लील बिन अहमद बसरी
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अरूज़ का औपचारिक प्रतिपादन छठवीं-सातवीं सदी के विद्वान ख़लील बिन अहमद बसरी ने किया, जिनका जन्म बसरा (अब इराक़ में) हुआ था। वे केवल साहित्य के ही नहीं, बल्कि संगीत की भी गहरी समझ रखने वाले व्यक्ति थे। इसी कारण बह्र पर आधारित शायरी में एक विशेष "रिदम" या "नग़्मगी" पाई जाती है — जिसे हम गुनगुना सकते हैं या गाकर प्रस्तुत कर सकते हैं।

बह्रों की सूची: 19 मौलिक बह्रें
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ख़लील साहिब ने 15 मूल बह्रें ईजाद कीं और बाद में 4 बह्रें और जुड़ने से यह संख्या 19 हो गई। इनके नाम, वज़्न, और रुक्न (छंद खंड) नीचे दिए गए हैं:
इन बह्रों का ज्ञान न केवल एक शायर को शेर कहने की तकनीकी शक्ति देता है, बल्कि उसे इस बात की भी समझ देता है कि वह भाव और विचार को किस लय में पिरोए, ताकि उसकी ग़ज़ल पाठक या श्रोता के दिल में उतर सके।

आइए बह्र को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं-
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सीधे शब्दों में बह्र को हम किसी शेर/ ग़ज़ल की लय या धुन कह सकते हैं. मगर सवाल उठता है कि लय या धुन क्या है? लय या धुन को हम ध्वनि का रिदम या पैटर्न कह सकते हैं और ध्वनि के रिदम या पैटर्न को बड़ी या छोटी ध्वनियों की आवृति और पुनरावृत्ति के रूप में परिभाषित कर सकते हैं. हाहाहा, परिभाषा स्वयं दुरूह होती जा रही है. चलिए, इसको सरल करते हैं. 

रिदम कैसे बनता है? यदि हमारे पास १ और  २ रूपये के कई सिक्के हैं तो हम उन्हें  अनगिनत प्रकार से सजा सकते हैं. मसलन, 

११२२ ११२२ ११२२ ११२२
१२१२ १२१२ १२१२ १२१२ 
२१२१ २१२१ २१२१ २१२१ 
२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ 
१२२ १२२ १२२ १२२ 
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 
२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ 
२१२२ १२१२ २२ 
२१२२ ११२२ २२ 
१२१२ ११२२ २२ 

इत्यादि. 

अब सिक्कों की जगह ध्वनियाँ को लें तो जो संगीत पैदा होगा वो पैटर्न के मुताबिक छोटी और बड़ी ध्वनियों के मेल, इंटरचेंज और इंटरवल से पैदा होगा. यही लय या धुन कहलाती है. इसे एक हिन्दी फ़िल्म के गाने से समझने का प्रयास करते हैं. 

"सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे
ऐ जाने वफ़ा फिर भी, हम तुम न जुदा होंगे"

इस गाने में शब्दभार का क्रम क्या है? आइए देखते हैं क्या है. 

सौ बार/ जनम लेंगे/, सौ बार/ फ़ना होंगे
२२१/ १२२२/ २२१/ १२२२   
ऐ जाने/-वफ़ा फिर भी/, हम तुम न/ जुदा होंगे
२२१/ १२२२/ २२१/ १२२२   

“२२१ १२२२ २२१ १२२२” इस गीत का शब्दभार/ पदभार या वज़्न का क्रम है, यही इसकी लय, धुन, या बह्र है. अब यही लय, धुन, या बह्र इस पूरी ग़ज़ल में, यानी हर मिसरे और हर शेर में होना ज़रूरी है. तभी इसकी लय, धुन, या बह्र का निर्वाह होना माना जानेगा, अन्यथा नहीं. आइए देखते हैं कि इस गाने में आगे की पंक्तियों का भार या वज़्न क्या है (हालाँकि ये गज़ल नहीं, एक गीत है). 

क़िस्मत ह/ में मिलने से/, रोकेगी/ भला कब तक
२२१/ १२२२/ २२१/ १२२२   
इन प्यार/ की राहों में/, भटकेगी/ वफ़ा कब तक
२२१/ १२२२/ २२१/ १२२२   
क़दमों के/ निशाँ खुद ही/, मंज़िल का/ पता होंगे
२२१/ १२२२/ २२१/ १२२२   
सौ बार/ जनम लेंगे/, सौ बार/ फ़ना होंगे
२२१/ १२२२/ २२१/ १२२२   

इस प्रकार स्पष्ट है कि लय, धुन, या बह्र ख़ास ध्वनि-खण्डों की आवृत्ति, पुनरावृत्ति, मध्यांतर, एवं तकरार से बनती है. 

बहरों के नाम भी हैं, और बह्र पहले से ही तय भी हैं हालाँकि नए बह्र की तलाश पे कोई पाबंदी नहीं है.  

जो लब्बे लुबाब निकल कर आया वो ये कि बह्र किसी भी ग़ज़ल की पूर्व-निर्धारित, यानी पहले से तय, लय या धुन है जो पूरी ग़ज़ल में एक सी होती है, और साथ ही ये कि लय, धुन, या बह्र ख़ास ध्वनि-खण्डों की आवृत्ति, पुनरावृत्ति, मध्यांतर, एवं तकरार से बनती है.  

अरूज़ या छंद के जनकों ने बह्र या छंद के ज्ञान के आविष्कार के साथ ही लगभग सभी बह्रों एवं छंदों का भी आविष्कार कर दिया था और इसलिए आधुनिक काल में पूर्ण रूप से नयी बह्रों का आविष्कार न के बराबर हुआ है. 

ख़लील बिन अहमद बसरी साहब ने कुल पंद्रह बह्रें ईजाद कीं और उसके बाद चार और बह्रें ईजाद की गईं. इस प्रकार मौलिक रूप से कुल १९ बह्रें ईजाद की गईं, हालाँकि उसके बाद बहुत सारी दूसरी बह्रें भी ईजाद की गईं हैं, जिनमें से कुछ ही प्रचलित हो पाईं. फ़िलहाल के लिए ये १९ बह्रें इस प्रकार हैं-

नाम  -  वज़न   -  रुक्न
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1 बह्र-ए-मुतक़ारिब-122 - (फ़ ऊ लुन)  
2 बह्र-ए-मुत्दारिक़-212 - (फ़ा इ लुन)
3 बह्र-ए-हज़ज-1222 - (मु फ़ा ई लुन)
4 बह्र-ए-रमल- 2122 - (फ़ा इ ला तुन)
5 बह्र-ए-रजज़- 2212 - (मुस तफ़ इ लुन)
6 मुक़्तज़िब- 2221 - (मफ़ ऊ ला त)
7 बह्र-ए-वाफ़िर-12112 - (म फ़ा इ ल तुन)
8 बह्र-ए-कामिल-11212 - (मु त फ़ा इ लुन)
9 बह्र-ए-तवील- (122 + 1222) (फ़ ऊ लुन + म फ़ा ई लुन)
10 बह्र-ए-मदीद- (2122 + 212) (फ़ा इ ला तुन + फ़ा इ लुन)
11 बह्र-ए-बसीत- (2212 + 212) (मुस तफ़ इ लुन + फ़ा इ लुन)
12  बह्र-ए-मुशाकिल- (2122 + 1222 + 1222) (फ़ा इ ला तुन + म फ़ा ई लुन + म फ़ा ई लुन)  
13 बह्र-ए-मुन्सरिअ- (2212 + 2221) (मुस तफ़ इ लुन + मफ़ ऊ ला त)
14  बह्र-मज़ारिअ- (1222 + 2122) (म फ़ा ई लुन + फ़ा इ ला तुन)
15  बह्र-ए-मुज्तस- (2212 + 2122) (मुस तफ़ इ लुन + फ़ा इ ला तुन)
16  बह्र-ए-ख़फ़ीफ़- (2122 + 2212 + 2122) (फ़ा इ ला तुन + मुस तफ़ इ लुन + फ़ा इ ला तुन) 
17  बह्र-ए-सरीअ- (2212 +2212 + 2221) (मुस तफ़ इ लु्न + मुस तफ़ इ लुन + मफ़ ऊ ला त)  
18  बह्र-ए-क़रीब- (1222 + 1222 + 2122)  (म फ़ा ईलुन + म फ़ा ई लुन + फ़ा इ ला तुन)    
19 बह्र-ए-ज़दीद- (2122 + 2122 + 2212) (फ़ा इ ला तुन + फ़ा इ ला तुन + मुस तफ़ इ लुन) 

राज़ नवादवी

प्रेषक
आकिब जावेद

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