सभ्यताएं - कविता

दरकती जा रही हैं सभ्यताएं
दरकी थी जैसे वर्षों पहले
और समा गई थी धरती में
जैसे अब समाने को तैयार है,
नहीं चेते अगर समय से
इतिहास बन जाएंगे।

-आकिब जावेद
#जोशीमठ

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