मुट्ठी में बंद है
भाग्य का
लेखा - जोखा,
अपनी - अपनी तक़दीर लिए
सब इस दुनिया में फिरे।
कौन कितना पाएगा?
कर्म ये सब बताएगा।
छल - कपट ,प्रपंच में
काहे सब पड़े?
प्रेम,मानवता से
जब
जीवन ये चले।
मुट्ठी बंद करके आया था,
खाली हाथ चला जाएगा।
बैरागी संसार से,
कभी दिल न लगे।
वरना
मोह - माया में फंस जाएगा।
-आकिब जावेद
4 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर कविता है।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंThanks For Visit My Blog.