कविता- इंकलाब ज़िंदाबाद है

एजेंडे सेट हो गए
दुकान तैयार हो गयी
सब बेचेंगे अपना माल
सवाल लेकिन यही है
सबको अपना माल लगता प्यारा
दूसरे में खोट नज़र है आता
अच्छा-बुरा हमको देखना नही
हमकों कुछ भी पढ़ना नही
क्यो की दूसरे का माल ख़राब है,
इंकलाब जिंदाबाद है!
इंकलाब जिंदाबाद है!

-आकिब जावेद

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