छू लेना गर तुम कभी भी जिन्दगी में बुलंदी को
अपनों को ना भूल जाना पाकर तुम बुलंदी को
कठिन आसान सुख दुःख हर मोड़ में साथ देते
पग पग में छण छण याद रखो पाकर बुलंदी को
आशा नही विश्वास है हाथ में अपने मैं पाउँगा
एक न एक दिन कुछ न कुछ करके दिखाऊंगा
बालक हूँ नादां हूँ मगर मेरे हाथों पे न जाओ यूँ
लगन समर्पण मेहनत से बुलंदी को मैं पाऊँगा
-आकिब जावेद
(मौलिक/स्वरचित)
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