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🌷 आइए गजल सीखें 🌷
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पूरी पोस्ट एक साथ-
गजल सीखने के लिए जरूरी है कि आपको
१-मात्रा ज्ञान हो।
२-रुक्न (अरकान) की जानकारी हो।
३-बहरों का ज्ञान हो।
४-काफ़िया का ज्ञान हो।
५-रदीफ का ज्ञान हो।
और फिर शेर और उसका मफ़हूम (कथन)।
एवं गजल की जबान की समझ हो।
१- मात्राज्ञान-
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क) जिस अक्षर पर कोई मात्रा नहीं लगी है या जिस पर छोटी मात्रा लगी हो या अनुस्वार (ँ) लगा हो सभी की एक (१) मात्रा
गिनी जाती है.
ख) जिस अक्षर पर कोई बड़ी मात्रा लगी हो या जिस पर अनुस्वार (ं) लगा हो या जिसके बाद क़ोई आधा अक्षर हो सभी की दो (२) मात्रा
गिनी जाती है।
ग) आधाअक्षर की एक मात्रा उसके पूर्व के अक्षर की एकमात्रा में जुड़कर उसे दो मात्रा का बना देती है।
घ) कभी-कभी आधा अक्षर के पूर्व का अक्षर अगर दो मात्रा वाला पहले ही है तो फिर आधा अक्षर की भी एक मात्रा अलग से गिनते हैं. जैसे-रास्ता २ १ २ वास्ता २ १ २ उच्चारण के अनुसार।
ज्यादातर आधा अक्षर के पूर्व अगर द्विमात्रिक है तो अर्द्धाक्षर को छोड़ देते हैं उसकी मात्रा नहीं गिनते. किन्तु अगर पूर्व का अक्षर एक मात्रिक है तो उसे दो मात्रा गिनते हैं. विशेष शब्दों के अलावा जैसे इन्हें,उन्हें,तुम्हारा । इनमें इ उ तु की मात्रा एक ही गिनते हैं। आधा अक्षर की कोई मात्रा नहीं गिनते।
च) यदि पहला अक्षर ही आधा अक्षर हो तो उसे छोड़ देते हैं कोई मात्रा नहीं गिनते। जैसे-प्यार,ज्यादा,ख्वाब में प् ज् ख् की कोई मात्रा नहीं गिनते।
उम्मीद है कि आपने अबतक मात्रा गिनने का पर्याप्त अभ्यास कर लिया होगा।
कुछ अभ्यास यहाँ दिए जा रहे हैं।
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शब्द. उच्चारण. मात्रा (वजन)
कमल. क मल. १२
रामनयन. रा म न यन. २११२
बरहमन. बर ह मन २१२
चेह्रा चेह रा २२
शम्अ. शमा २१
शह्र. शहर. २१
जिन्दगी जिन्दगी २१२
कह्र. कहर. २१
तुम्हारा तुमारा १२२
दोस्त. दोस्त. २१
दोस्ती दो स् ती २१२
नज़ारा नज़्जारा २२२
नज़ारा १२२
नज़ारः १२१
२- रुक्न /अरकान-
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रुक्न को गण ,टुकड़ा या खण्ड कह सकते हैं।
इसमें लघु (१) और दीर्घ (२) मात्राओं का एक निर्धारित क्रम होता है।
कई रुक्न (अरकान) के मेल से मिसरा/शेर/गज़ल बनती है।।
इन्हीं से बहर का निर्माण होता है।
मुख्यतः अरकान कुल आठ (८) हैं।
नाम🌷 वज़न🌷 शब्द🌷
१-मफ़ाईलुन. १२२२. सिखाऊँगा
२-फ़ाइलुन. २१२. बानगी
३-फ़ऊलुन. १२२. हमारा
४-फ़ाइलातुन. २१२२. कामकाजी
५-मुतफ़ाइलुन११२१२ बदकिसमती
६-मुस्तफ़इलुन २२१२ आवारगी
७-मफ़ाइलतुन १२११२ जगत जननी
८-मफ़ऊलात ११२२१ यमुनादास
ऐसे शब्दों को आप खुद चुन सकते हैं।
इन्हीं अरकान से बहरों का निर्माण होता है।
३-बहर-
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रुक्न/अरकान /मात्राओं के एक निश्चित क्रम को बहर कहते हैं।
इनके तीन प्रकार हैं-
१-मुफ़रद(मूल) बहरें।
२-मुरक्क़ब (मिश्रित) बहरें।
३-मुजाहिफ़ (मूल रुक्न में जोड़-तोड़ से बनी)बहरें।
बहरों की कुल संख्या अनिश्चित है।
गजल सीखने के लिए बहरों के नाम की भी कोई जरूरत नहीं। केवल मात्रा क्रम जानना आवश्यक है,इसलिए यहाँ प्रचलित ३२ बहरों का मात्राक्रम दिया जा रहा है। जिसपर आप गजल कह सकते हैं, समझ सकते हैं।
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1)-11212-11212-11212-11212
2)-2122-1212-22
3)-221-2122-221-2122
4)-1212-1122-1212-22
5)-221-2121-1221-212
6)-122-122-122
7)-122-122-122-122
8)-122-122-122-12
9)-212-212-212
10)-212-212-212-2
11)-212-212-212-212
12)-1212-212-122-1212-212-22
-12122-12122-12122-12122
13)-2212-2212
14)-2212-1212
15)-2212-2212-2212
16)-2212-2212-2212-2212
17)-2122-2122
18)-2122-1122-22
19)-2122-2122-212
20)-2122-2122-2122
21)-2122-2122-2122-212
22)-2122-1122-1122-22
23)-1121-2122-1121-2122
24)-2122-2122-2122-2122
25)-1222-1222-122
26)-1222-1222-1222
27)-221-1221-1221-122
28)-221-1222-221-1222
29)-212-1222-212-1222
30)-212-1212-1212-1212
31)-1212-1212-1212-1212
32)-1222-1222-1222-1222
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एक बहर जिसे मात्रिक बहर भी कहते हैं ,हिन्दी गजलकारों ने ज्यादा प्रयोग किया है।
२२ २२ २२ २२
२२२ २२२ २२२ २२२
२२२२ २२२२ २२२२ २२
इत्यादि।
विशेष-१)
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जिन बहरों का अन्तिम रुक्न 22 हो उनमें 22 को 112 करने की छूट हासिल है।
२) सभी बहरों के अन्तिम रुक्न में एक 1(लघु) की इज़ाफ़त (बढ़ोत्तरी) करने की छूट है। किन्तु यदि सानी मिसरे में इज़ाफ़त की गयी है तो गज़ल के हर सानी मिसरे में इज़ाफ़त करनी होगी.जबकि उला मिसरे के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है. जिसमें चाहे करें और जिसमें चाहें न करें।
३) दो बहरें
१-२१२२-११२२-२२ और
२-२१२२-१२१२-२२ के पहले रुक्न २१२२ को ११२२ किसी भी मिसरे मे करने की छूट हासिल है।
४) मात्रिक बहरों २२ २२ २२ २२ इत्यादि जिसमें सभी गुरु हैं ,में -
(क- ). किसी भी (२)गुरु को दो लघु (११) करने की छूट इस शर्त के साथ हासिल है कि यदि सम के गुरु (२) को ११किया गया है तो सिर्फ सम को ही करें और यदि विषम को तो सिर्फ विषम को। मतलब यह कि या तो विषम- पहले,तीसरे,पाचवें,सातवें,नौवे आदि में सभी को या जितने को मर्जी हो २ को ११ कर सकते हैं। या फिर सिर्फ सम -दूसरे,चौथे,छठवें,आठवें.आदि के २ को ११ कर सकते हैं।
(ख-). २२२ को १२१२,२१२१ ,२११२ भी कर सकते हैं।
कुछ अभ्यास तक्तीअ (गिनती/विश्लेषण) के साथ-
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A-
2122 1212 22
दोस्त मिलता /नसीब से /ऐसा,
2122. /1212. /22
जो ख़िजा को /बहार कर/ता है।।
2122. /1212. /22
B-
1222 1222 1222 1222
दिया है छो/ड़ उसने भो/र में अब भै/
1222. /1222. /1222 /
रवी गाना,
1222
मुहब्बत की /वो मारी बस/
1222. /1222. /
विरह के गी/त गाती है।।
1222. /1222
C-
2122 2122 2122 212
हुश्न औ ई/मान तक है /
2122. /2122 /
बिक रहा बा/जार में,
2122. /212
शर्म आती /है तिजारत /
2122. /2122. /
से तिजारत/ क्या करूँ।।
2122. /212
D-
1212 1122 1212 112
किसी का हुश्/न नहीं को/
1212. /1122. /
ई भी शबा/ब नहीं।
1212. /112
मेरे नसी/ब में शायद /कोई गुला/
1212. /1122. /1212. /
ब नहीं।।
112
E-
221 2121 1221 212
गुलदस्ता /ए ग़ज़ल हो/
221. /2121. /
कि तुम कोई/ ख्वाब हो।
1221 /212
बाद ए त/हूर ए हुस्न ओ /
221. /2121. /
अदा लाज/वाब हो।।
1221. /212
F-
2222 2222 2222 222
पाकिस्तानी /बोल बोलते,
2222 /21212
कुछ अपने ही /साथी हैं,
2222. /222
जन-गण-मन की /हार लिखें या,/
2222. /21122. /
फिर उनको गद्/दार लिखें।।
2222. /2112
ऐसे ही आप अपनी व अन्य की गजलों की तक्तीअ कर के अपना अभ्यास बढ़ा सकते हैं।
4- क़ाफ़िया (समान्त)-
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क़ाफ़िया समझने के लिए पहले एक गज़ल लेते हैं जिससे समझने में आसानी हो।
गजल-
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बहर-१२२२-१२२२-१२२२-२२
क़ाफ़िया-आने
रदीफ़-वाले हैं।
गज़ल-
सुना है वो कोई चर्चा चलाने वाले हैं।
सदन में फिर नया मुद्दा उठाने वाले हैं।।(मतला).🌷
अदब से दूर तक रिश्ता नहीं कोई जिनका,
सलीका अब वही हमको सिखाने वाले हैं।।
लगा के ज़ाल कोई अब वहाँ बैठे होंगे,
सुना है फिर से वो हमको मनाने वाले हैं।।
बड़ी मुश्किल से हम निकले हैं जिनकी चंगुल से,
सुना है फिर कोई फ़न्दा लगाने वाले हैं।।
भरोसा अब नहीं हमको है जिनकी बातों पर,
नया वो दाव कोई आजमाने वाले हैं।
हैं फिर नज़दीकियाँ हमसे बढ़ाने आये जो,
कोई इल्जाम क्या वो फिर लगाने वाले हैं।।
पता जिनको नहीं है खुद के ही हालातों का,
मिलन तकदीर वो मेरी बताने वाले हैं।।(मक्ता).🌷
--------मिलन.
इस गजल में काफिया के शब्द हैं-
चलाने,उठाने,सिखाने,मनाने,लगाने,आजमाने,लगाने, बताने।
आप देख रहे हैं कि काफिया के शब्द सचल हैं। बदलते रहते हैं। हर शब्द में एक अक्षर अचल है -ने,और एक स्वर अचल है आ। दोनों को मिलाकर काफिया बना है-आने,
इस प्रकार हम देखते हैं कि क़ाफिया भी अचल है किन्तु काफिया के शब्द सचल।
अगर हम काफ़िया के शब्दों से आने निकाल दें तो बचेगा-चल,उठ,सिख,मन आदि. सभी समान मात्रा या समान वजन के हैं।
काफ़िया की मुख्य बातें-
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१-काफ़िया के शब्द से काफिया निकाल देने पर जो बचे वो समान स्वर और समान वजन के हों।
२-काफ़िया के रूप में (हमारे) के साथ (बहारें) ,हवा के साथ धुआँ नहीं ले सकते । अनुस्वार (ं) का फर्क है।
३-मतले के शेर से ही क़ाफ़िया तय होता है और एक बार क़ाफ़िया तय हो जाने के बाद उसका अक्षरशः पालन पूरी गजल में अनिवार्य होता है।
5- रदीफ़(पदान्त)-
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१-क़ाफ़िया के बाद आने वाले अक्षर,शब्द, या वाक्य को रदीफ़ कहा जाता है।
२-यह मतले के शेर के दोनो मिसरों में और बाकी के शेर के सानी मिसरे में काफिया के साथ जुड़ा रहता है।
३-यह अचल और अपरिवर्तित होता है। इसमें बदलाव नहीं होता।
४-यह एक अक्षर का भी हो सकता है और एक वाक्य का भी। किन्तु छोटा रदीफ़ अच्छा माना जाता है।
५- शेर से रदीफ़ को निकाल देने पर यदि शेर अर्थहीन हो जाए तो रदीफ़ अच्छा माना जाता है।
गजल-
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१-पहले शेर को मतले का शेर कहा जाता या गजल का मतला (मुखड़ा)।
जिसके दोनो मिसरों(पंक्तियों): मिसरा उला (पहली या पूर्व पंक्ति) और मिसरा सानी (दूसरी पंक्ति या पूरक पंक्ति) दोनों में रदीफ़ (पदान्त) होता है।
२-गजल में कम से कम पाँच शेर जरूर होने चाहिए।
३-गजल का आखिरी शेर जिसमें शायर का नाम होता है; को मक्ते का शेर या मक्ता कहा जाता है।
४-बिना रदीफ़ के भी गजल होती है जिसे ग़ैरमुरद्दफ़ (पदान्त मुक्त) गजल कहते हैं।
५-यदि गजल में एक से अधिक मतले के शेर हैं तो पहले के अलावा सभी को हुस्ने मतला (सह मुखड़ा) कहते हैं।
६-बिना मतले की गजल को उजड़े चमन की गजल, बेसिर की गजल,सिरकटी गजल,सफाचट गजल,गंजी गजल आदि नाम मिले हैं।हमें ऐसी गजल कहने से बचना चाहिए।
७-बिना काफ़िया गजल नहीं होती।
गजल के कुछ नियम-
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१-अलिफ़ वस्ल का नियम -
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एक साथ के दो शब्दों में जब अगला शब्द स्वर से शुरु हो तभी ये सन्धि होती है। जैसे- हम उसको=हमुसको,
आखिर इस= आखिरिश,अब आओ=अबाओ।
ध्यान यह देना है कि नया बना शब्द नया अर्थ न देने लगे।
जैसे- हमनवा जिसके=हम नवाजिस के
२-मात्रा गिराने का नियम-
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१) संज्ञा शब्द और मूल शब्द के अतिरिक्त सभी शब्दों के शुरु और आखिर के दीर्घ को आवश्यकतनुसार गिराकर लघु किया जा सकता है। इसका कोई विशेष नियम नहीं है,उच्चारण के अनुसार गिरा लेते हैं।
२) जिन अक्षरों पर ं लगा हो उसे नहीं गिरा सकते। पंप, बंधन आदि।
३) यदि अर्द्धाक्षरों से बना कोई शब्द की मात्रा दो है तो उसे नहीं गिरा सकते।जैसे क्यों ,ख्वाब,ज्यादा आदि।
३-
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मैं के साथ मेरा
तूँ के साथ तेरा
हम के साथ हमारा
तुम के साथ तुम्हारा
मैं के साथ तूँ
मेरा के साथ तेरा
हम के साथ तुम
हमारा के साथ तुम्हारा
का प्रयोग ही उचित है ।
४-
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एकबचन और बहुबचन एक ही मिसरे में न हो ,और अगर होता है तो शेर के कथन में फर्क न हो।
५-
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ना की जगह न या मत का प्रयोग उचित है।
६-
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अक्षरों का टकराव न हो
जैसे- तुम-मत-तन्हा-हाजिर-रहना-नाखुश में म,त,हा,र का टकराव हो रहा है। इनसे बचना चाहिए।
७-
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मतले के अलावा किसी उला मिसरे के आखिर में रदीफ के आखिर का शब्द या अक्षर होना दोषपूर्ण है।
८-
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किसी मिसरे में वजन पूरा करने के लिए कोई शब्द डाला गया हो जिसके होने या न होने से कथन पर फर्क नहीं पड़ता ऐसे शब्दों को भर्ती के शब्द कहा जाता है। ऐसा करने से बचना चाहिए।
गज़ल की ख़ासियत-
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अच्छी गजल वह है-
१) जो बहर से ख़ारिज़ न हो।
२) क़ाफ़िया रदीफ़ दुरुस्त हों।
३) शेर सरल हों।
४) शायर जो कहना चाहता है वही सबकी समझ में आसानी से आए।
५) नयापन हो।
६) बुलन्द खयाली हो।
७) अच्छी रवानी हो।
८) शालीन शब्दों का प्रयोग हो।
उम्मीद है कि आप सब गजल की बहुत सी बारीकियों से वाकिफ़ हो गए होंगे।
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अन्त में गजल पर हुई मेरी और निर्मल नदीम जी की एक वार्ता गज़ल के बारे में-
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मैं--भाई कुछ गजल की बात बताएं।
निर्मल नदीम-- ग़ज़ल एक नाज़ुक उर्दू काव्य विधा है।
मैं ---- जी।
निर्मल नदीम-- जिसको सिर्फ बहर क़ाफ़िया और रदीफ़ के सिवाय बहुत कुछ सीखना पड़ता है जो खुद के तजरूबे से आता है।
मैं ---जी सही बात।
निर्मल नदीम-- चंद लोग ऐसे भी हैं जो बहर में रदीफ़ क़ाफ़िया जोड़ देने को शायरी समझते हैं।
मैं --- जी।
निर्मल नदीम-- जबकि ऐसा नहीं है।
मैं ---जी।
निर्मल नदीम-- ग़ज़ल का एक शेर ही ग़ज़ल को बर्बाद कर देता है जिस तरह तालाब की एक गन्दी मछली तालाब को।
मैं ---जी बिल्कुल।
निर्मल नदीम--इसलिए हर शेर सोच समझकर कहना चाहिए।
मैं --- जी भाई।
निर्मल नदीम-- ज़रूरी नहीं कि ग़ज़ल में 9 शेर कहे जायँ।
5 शेर भी बहुत हैं अगर अच्छे हों।
मैं --- जी. जमाना टी२० का है। एक ओवर ५ छक्के।
निर्मल नदीम--लोग ग़ज़ल को लंबा खींचने के बजाय अच्छा कहें कम कहें।
मैं --- जी ।
निर्मल नदीम-- एक उम्दा शेर पूरी ग़ज़ल पर भारी होता है।
लेकिन पूरी ग़ज़ल एक उम्दा शेर पर भारी नहीं होती।
मैं ---जी ।
निर्मल नदीम-- ग़ज़ल की ज़मीनी जानकारी होने के बाद ग़ज़ल सीखी जाती है।
मैं --- जी ।
निर्मल नदीम--कुछ लोग अरूज़ सीखकर उस्ताद बन जाते हैं।
मैं --- जी ।
निर्मल नदीम-- जबकि ऐसा नहीं है।
आपको एक बात बताऊँ ?
मैं --- जी जरूर।
निर्मल नदीम-- ग़ालिब कितने बड़े उस्ताद थे ?
आप कहेंगे कि उनके जैसा कोई नहीं।
मैं --- जी।
निर्मल नदीम-- लेकिन उनको अरूज़ आता ही नहीं था। अगर मैं ये कहूँ तो आश्चर्य होगा आपको।
मैं --- क्या ?
नितिन शर्मा--- मुझे हुआ।
निर्मल नदीम-- या आप कहेंगे मैं मूर्ख हूँ।
मैं ---बिल्कुल नहीं।
निर्मल नदीम--लेकिन सही यही है।
उनको अरूज़ नहीं आता था।
मैं --- फिर ?
निर्मल नदीम-- फिर भी वो उस्ताद थे।
मैं --- जी ।
निर्मल नदीम--तो समझ लीजिये ।
शायरी तो ख़ुदा की नेमत है।
जिसको मिल जाय वो राजा।
मैं ---जी सही कहा आपने।
निर्मल नदीम--कितने अरूज़ी हैं जो ढंग का शेर नहीं कहते।
इसलिए अरूज़ सीखिये।
लेकिन शायरी तो ख़ुदा ही देता है।
मैं --- जी ।
निर्मल नदीम--ख़ुशी की बात शायरों के लिए ये है कि शायरी सभी कलाओं में सबसे उत्तम कला है।
मैं --- वाह्ह्ह्ह्ह ।
निर्मल नदीम-- सबसे ये मेरा निवेदन है की शायरी का अपमान न करें अन्यथा मिसरे के लिए भी तरसना होगा।
मैं --- अपमान कब मानेगे ?
निर्मल नदीम-- बड़े भाई ! आप जानते ही होंगे कुछ लोग शायरी को इस तरह पेश करते हैं , जैसे वो किसी कोठे की तवाइफ़ हो। कुछ लोग उसको nonveg भी कहते हैं।शायर की अपनी गरिमा होती है। इसको बचा के रखें।
मैं ---भाई ! शायरी तो इबादत है।
निर्मल नदीम--जी भाई। ये तपस्या ही है।
मैं --- बहुत बड़ी बात।
निर्मल नदीम-- शुक्रिया ।
फिर मिलते हैं।
मैं --- जी ।
(समाप्त)
--------मिलन.
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4 टिप्पणियाँ
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया, बहुत सीखने को मिलेगा आपसे...
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक विस्तृत जानकारी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
बहुत ही ज्ञानवर्धक...
जवाब देंहटाएंThanks For Visit My Blog.