कच्चे दिए बना कर बैठ गई
वो उम्मीद सज़ा कर बैठ गई!
मेरी दिवाली भी रोशन होगी
वो भी आस लगाकर बैठ गई!
कोई न आया दिये लेने पास
वो बहुत हतास और निराश
कैसे खुशियाँ आयेगी पास
वो निराश - उजागर बैठ गई!
रंग बिरंगी सी है दुनियाँ
यहाँ किसी की फ़िक्र कहाँ
अपना- अपना देखते सब
किसका दामन भरा यहां।
मासूम उमर सुख पायेगी
मेरी माँ दिये बेच के आएगी!
हमें भी नए बसन दिलाएगी
हमे खूब पकवान खिलाएगी!
साब ले लो कच्चे दिए माँ के
कई सपनो को बेच रही है ये!
दीप घर में लाओ मेरी माँ के
धूप में परिश्रम कर रही है ये!
-आकिब जावेद
स्वरचित/मौलिक
0 टिप्पणियाँ
Thanks For Visit My Blog.