नज़रो से उठाते रहे,यूँ गिराते रहे।।ग़ज़ल

हम नदियों के किनारे मिलाते रहे
वो हमें अपने नज़रो से गिराते रहे

राह के पत्थर अब हमे डराते रहे
हम भी राह में उन्हें आज़माते रहे

वो चेहरे में झूठा नकाब लगाते रहे
नज़रो से उठाते रहे,यूँ गिराते रहे

किस्सा वो हमें प्यार का सुनाते रहे
हम मन ही मन यूँ प्यार दबाते रहे

दुनियादारी से हम वाकिफ़ ना रहे
लोग हमें हमेशा यूँ  आज़माते रहे

वो झुकी झुकी नज़र झुकाते रहे
यूँ रौब दिखा दिखा कर डराते रहे

वो हाथों की लकीरों को देखते रहे
भाग्य का बिगाड़ते रहे,बनाते रहे

जिंदगी में धुँआ ही धुँआ हैं"आकिब"
कंही आग लगाते रहे,यूँ ही बुझाते रहे।।

-आकिब जावेद

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