शून्य का आविष्कार
था गणित का पेपर लगा हुआ,
और मुझे बुखार सा चढ़ा हुआ,
कैसे मैं पास हो पाऊंगा,
दिन-रात सोच में पड़ा हुआ।
था गणित के ऊपर पहले से,
मेरा विश्वास था घटा हुआ,
समबाहु नहीं कोई राक्षस,
है त्रिभुज प्रकार जब पता हुआ।
मनहूस घड़ी फिर आ टपकी,
जब पेपर सामने आया था,
पेपर के पन्ने 20 देख,
मेरा तो सर चकराया था।
उस 3 खंड के पेपर ने,
दिल के टुकड़े तैंतीस किए,
अच्छे नंबर की ख्वाहिश में,
उसने छेद पैन्तीस किए।
हे राम बचा लो तुम मुझको,
हे श्याम बचा लो तुम मुझको,
ना फर्स्ट डिवीजन की आशा,
बस पास करा दो तुम मुझको।
बजरंगबली का नाम लिया,
पेन को कॉपी पर पटक दिया,
पेपर में सबसे सरल सरल,
प्रश्नों को मैंने लपक लिया।
चक्रवृद्धि के प्रश्नों को,
देखा तो सर चकराया था,
यह कौन महाजन पापी है,
जिसने इतना ब्याज लगाया था।
समकोण त्रिभुज को फिर मैंने,
एक वृत्त खंड में पटक दिया,
पाइथागोरस के नियमों को,
एक पल में मैंने पलट दिया।
फिर रामानुज श्रीधराचार्य के,
सूत्रों पर फरसा चला दिया,
त्रिकोणमिति और ज्यामिति को,
दो सगी थी बहन बता दिया।
जैसे ही मेरे गुरु जी ने,
मेरी कॉपी को साइट किया,
आर्यभट्ट नारायण को,
कॉपी चेक करने इनवाइट किया।
यह कौन सा ऐसा बालक है,
जिसने गणित को पलट दिया,
यह गणित हमारी फूलों सी,
पल भर मे इसने मसल दिया।
पर आर्यभट्ट पर अनजाने में,
मैंने एक उपकार किया,
मेरी कॉपी पर देकर ही,
उसने शून्य आविष्कार किया।।
लेखक
नीतेश सिंह
सहायक शिक्षक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय शाहपुर बिनौरा,
हरियावां, हरदोई।
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