कुछ तो हैं....मुझे शिकायत हैं। लेख एवं कहानी

मोहल्ले में जैसे ही निकला था कि सड़क पार करके बाज़ार पहुँच गया,वहाँ नुक्कड़ में 3-4 लड़के आपस में बाते कर रहे थें, कि मैं भी वही खड़ा हो गया।
वो सब आपस में लड़कियों के बारे में अश्लील बातें कर रहे थे तथा आते जाते लड़कियों पर गंदे कमेंट कर रहे थे तथा कोई कुछ कह रहा था कि कोई कुछ बोल रहा था।सबकी ऐसे बाते सुनकर मुझसे रहा ना गया,मैंने उन्हें डांट कर भगा दिया वहाँ से लेकिन मन ही मन इस युवा पीढी की सोच पर गुस्सा भी आ रही थी,हमने अपनी नैतिकता को कहाँ ताक पर रख दिया हैं।हम इतने बेशर्म क्यू होते जा रहे हैं, मुझे खुद से ही इस बात की शिकायत थी।तभी आगे बढ़ा ही था कि मेरा अगला पैर एक गड्ढे के चपेट में आ गया,हाय रे ये गड्ढे कब सुधरेंगे,मैं तो इस गड्ढे में ही था जो पानी वालो ने ठीक करने के लिये कई दिनों से अच्छी खासी रोड को खोद दिया था,फिर ठीक करने के नाम से ठीक ही ना कर रहे थे।मुझे बहुत गुस्सा आ रही थी,मुझे अब इन सरकारी संस्थान पे शिकायत हो रही थी क्यू कि ये कभी सुधरने वाले ही नही हैं।मै आगे बढ़कर ही निकला था कि ये रोड को को जाम करके रखा था पता चला कि आगे एक किसी खास पार्टी का जुलुस निकल रहा था इस वजह से सारे शहर में जाम की इस्तिथी हो गयी थी।वहाँ एक एम्बुलेंस फंस गई थी,मैं वही खड़ा हुआ था पास जा कर देखा तो वहाँ को प्रसूता थी उसमें।दर्द से कराह रही थी बेचारी जैसे तैसे करके जाम से एम्बुलेंस को निकाला लेकिन तब तक वो वही पर बच्चे को जन्म दे चुकी थी।मुझे बहुत दुख हुआ और इन राजनीतिक पार्टियों से शिकायत हो रही थी कि ये सब दिखावा करने की क्या जरूरत हैं और सार्वजिनक स्थानों पर ऐसे चीज़ों को नही करना चाहिये।
थोड़ा कँही कोई जगह इस्तमाल करना चाहिये।जिससे इन सब असुविधा से बचा जा सके।यही सब सोचते हुए कुछ आगे बढ़ रहा था और खुद में गुस्सा आ रही थी।अब आगे बढ़ते हुये एक दुकान जा चूका था,वहाँ मैंने कुछ दैनिक के इस्तमाल की चीज़ों को खरीदा लेकिन जैसे ही पैसे के रसीद लिया तो उसने तो मेरे होश उड़ा दिए उसने उन्ही चीज़ों के काफी बढे हुए दाम बताये बताये की ये सब GST के वजह से बढ़ गए है, अब सरकार के ऊपर शिकायत करने का मन हो रहा था।कि रोज़ रोज़ के सामानों में क्यू इतनी महंगाई कर रहे है अब तो जिंदगी भी दुश्वार हो गयी हैं।कैसे अपने जीवन को सुधारें,एक तो बेरोज़गारी के मारे दर दर भटक रहा नौजवान नौकरी भी नही मिलती फिर इसके बाद दैनिक जीवन में सरकार की दखलंदाज़ी भी बढ़ती जा रही हैं।अब कैसे जीवन को जिया जाये।।
एक तो ठहरे किसान ऊपर से महंगा सामान अब कैसे जिए इंसान।।
हाय फिर भी कितना मर रहा किसान।किसान की कितनी उपेछा होती रही हैं, सस्ते में खरीदते सामान फिर किसान को ही मंहंगे में बेचते है सब।मुझे शिकायत अपने समाज से भी हैं कभी किसी के बारे में नही सोचता हैं चाहे अपनी मर्यादाओ को अच्छे से बनाये रखे या फिर किसी की तरक्की से पड़ोसी को चिढन होती हो।अपनी मानसिकता को बदलने का नाम ही नही लेते हैं।एक बार रेल से सफर में जा रहा था तभी मैंने देखा की लोग रेल के सामान को ही छति पहुंचा रहे थे,मुझे इनके ऊपर दया आ रही थी की ये कैसे लोग जो अपने ही संपदा को नुक्सान पहुंचा रहे है खैर ये सब तो मानसिकता हैं नादान इंसान की लेकिन सुधार करना चाहिये खुद पर तभी दूसरी को सुधारा जा सकता हैं।
कुछ पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहूंगा:

खुद से खुद को सुधारें ना हम..
दुसरो पे खूब तोहमतें आम करे...
हम नादाँ इंसा हैं....
जिंदगी ऐसे ही बर्बाद करे...

धन्यवाद

~आकिब जावेद
बिसंडा(बांदा)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ