असर हैं प्यार की रज़ाई का।।ग़ज़ल

जब नज़र पडी मेरी किसी के बुराई पर
खुद पे ना ध्यान दिया अपनी परछाई का

बादलों की छटा और मौसम पुरवाई का
याद आता हैं दौर किसी के रुसवाई का

बेहाल दिल को ना जाना किसी ने यहॉं
मुख़्तसर यही तो दवा हैं मुस्कुराई का

वो रंजो गम का शहर और याद तेरी
वो याद आता हैं दिन अब पुरवाई का

तुझे सोचूँ,तुझे पाऊँ धड़कन में बसाऊँ
तेरी यादे ही तो वजह हैं मुस्कुराई का

बाते बड़ी बड़ी की,कर सके ना कुछ
यही तो मौका होता हैं जग हँसाई का

चाँद तारो की बाते करते हो सनम प्यार में
क्या तुम्हे अब अहसास नही हैं जुदाई का

पेड़ो की शीतल छाया सुख देती राहगीरों को
अक्सर अहसास कराती हैं दर्द अब जुदाई का

ख्वाबो की चादर को ओढ़ कर सोये रहे रात भर
यूँ ही नींद नही आती,ये असर हैं प्यार की रजाई का

दरो दीवारों को अब घर यूँ ही नही कहते हम
आकिब'लगता हैं रंगरोगन प्यार की पुताई का

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