डोली!!हाइकु

नाज़ों से पली
बाबुल के आंगन
वो दौड़ी खेली

डाँट भी सही
माँ की लोरी भी सूनी
पायी प्यार भी

भाई से लड़ी
बहन को सताई
खूब हँसाती

समय बीता
अब बड़ी हो गयी
चला ना पता

आया समय
वो अब विदाई का
रुलाई वाला

पत्थर रख
घर वाले करते
घर से विदा

बैठाया डोली
वो नाजुक घड़ी थी
दुल्हन रोयी

बाबुल घर
छोड़ अब पराये
घर को चली

याद हैं आता
घर से वो पुराना
सब से नाता

डोली में हैं जो
देखो होती हैं जान
दो दो घरों की

वो देखे बैठे
आकिब की बहना
डोली सजाये।।

®आकिब जावेद


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