कैसी नीति म्यांमार की


        कैसी नीति म्यांमार की
आज कल कुछ दिनों से मन बहुत व्यथित है. हमारे पड़ोसी देश म्यांमार में रोहंगिया मुश्लिमो के ऊपर हो रहे जुल्म और उनको मारा जाना बहुत ही भयानक है. आखिर ये सब उस देश में हो रहा है जंहा के सर्वेसर्वा आन सांग सू की को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. हां आपने सही सुना शांति के लिए नोबेल,आखिर कैसी शांति ये तो समझ के परे है. शांति तो दूर की बात वहा के नागरिक चाहे वो रोहंगिया मुश्लिम हो या हिन्दू सभी को मारा जा रहा है.
आखिर सू की को समझना चाइए उन्हें जो सम्मान विश्व स्तर पर नोबेल जैसा सम्मान वो भी शांति के लिए दिया गया है. उसकी गरिमा को बना कर रखे।
मानवाधिकार का हनन वो भी खुलेआम हो रहा है. रोहंगिया मुश्लिम म्यांमार को छोड़कर वहा से दूसरे देश में शरणार्थी बनने को मजबूर है।
लोगो के गांव के गाँव जल दिए जा रहे हैं।रोहंगिया मुश्लिमो को मारा जा रहा है. यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व और मानवाधिकार अपनी आँख मूंदे हुए है।
सभी पडोशी देशो को मदद के लिए आगे आना चाइए।जाती धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत के बारे में सोचना चाइए।
अगर हम इसी तरह धर्म को देख कर आँख बंद कर लेंगे तो यह इंसानियत के लिए सयाह पक्ष होगा।अगर हम यह सोचे यह तो दूसरे देश की समस्या है तो यह गलत है, हमारे देश का सम्बन्ध भी म्यांमार से है।
लोगो को धर्म से ऊपर उठकर इन्सानियत के नाते म्यांमार की नीतियों की आलोचना करनी चाहिए.और आन सांग सू की का नोबेल पुरुस्कार वापस ले लेना चाहिए।
सू की को कोई हक़ नही है यह पुरस्कार अपने पास रखने का वो भी नोबेल पुरस्कार.किस अधिकार से अपने पास रख रही है, जब खुलेआम इतनी ज्यादती कर रही है, अपने नागरिको के साथ।
-आकिब जावेद,बिसँडा

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