आज की शाइरी - आकिब जावेद

हुआ  आइना  रूबरू  भी  मेरे,
तमन्ना  बहुत  थी  मुलाक़ात  की।

बहारों  ने  मिलकर उजाड़ा मुझे,
खिली कब कली मेरे जज़्बात की।

मैं  हाथों  को  अपने न  फैलाऊंगा,
नहीं   चाहिए  ज़ीस्त  ख़ैरात  की।

-आकिब जावेद

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