दोस्तो
आज गज़ल के बारे में कुछ मौलिक जानकारी आप के साथ साझा कर रहा हूँ।
इस उम्मीद के साथ कि वो आपकी जानकारी को पुख्ता करेगी ।
और विभिन्न स्त्रोतों से जुटाई गयी जानकारी के साथ 2 मैं,
गज़ल गुरु आ विजय स्वर्णकार, आ विनय सागर जायसवाल जी आ कुँवर कुसुमेश का विशेष आभारी हूँ ।🌹
1)
#ग़ज़लकीसामान्यजानकारी#
क्यों न हम ग़ज़ल की बुनियादी बातों से इस स्तंभ का आरंभ करें, इससे बेहतर तरीके से इस विधा को समझा जा सकेगा। ग़ज़ल क्या है? इस विषय पर बडी चर्चा हो सकती है और हम आगे इस पर परिचर्चा आयोजित भी करेंगे। बहुत बुनियादी बात "विजय वाते" अपनी ग़ज़ल में कहते हैं:-
हिन्दी-उर्दू में कहो या किसी भाषा में कहो
बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है।
यानी ग़ज़ल केवल शिल्प नहीं है इसमें कथ्य भी है। यह संगम है तकनीक और भावना का। तकनीकी रूप से ग़ज़ल काव्य की वह विधा है जिसका हर शे'र (‘शे'र’ को जानने के लिये नीचे परिभाषा देखें) अपने आप मे कविता की तरह होता है। खासतौर पर ग़ज़ल लफ्ज़ गज़ाला से लिया गया है । उर्दू में गज़ाला हिरण को कहते हैं । जिस प्रकार हिरण पहले अपने आगे के पैरों को क्रियान्वित कर पिछले पैरों से कदम को मुक़म्मल कर चौकड़ी भरता है, उसी प्रकार एक शेर का मिसरा उला हिरण के आगे के दोनों पैरों की तरह कार्य करते हुए दूसरा मिसरा सानी जो हिरण के पिछले पैरो का जोर लगा चौकड़ी शेर के रूप में मुक़म्मल करता है । हर शे'र का अपना अलग विषय होता है। लेकिन यह ज़रूरी शर्त भी नहीं, एक विषय पर भी गज़ल कही जाती है जिसे ग़ज़ले- मुसल्सल कहते हैं। उदाहरण के तौर पर “चुपके- चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है” बेहद प्रचलित ग़ज़ल है, ये “ग़ज़ले मुसल्सल” की बेहतरीन मिसाल है। ग़ज़ल मूलत: अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है स्त्रियों से बातें करना। अरबी भाषा की प्राचीन ग़ज़ले अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप थी भी, लेकिन तब से ग़ज़ल नें शिल्प और कथन के स्तर पर अपने विकास के कई दौर देख लिये हैं।
ग़ज़ल को समझने के लिये इसके अंगों को जानना आवश्यक है। आईये ग़ज़ल को समझने की शुरुआत सईद राही की एक ग़ज़ल के साथ करते हैं, और सारी परिभाषाओं को इसी ग़ज़ल की रौशनी में देखने की कोशिश करते हैं:
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे
मेरी दास्तां को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे
जो कहता था कल तक संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे
कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे
अ) शे'र:
दो पदों से मिलकर एक शे'र या बैंत बनता है। दो पंक्तियों में ही अगर पूरी बात इस तरह कह दी जाये कि तकनीकी रूप से दोनों पदों का वज़न समान हो। उदाहरण के लिये:
कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे
शेर की दूसरी पंक्ति का तुक पूर्वनिर्धारित होता है (दिये गये उदाहरण में “सवेरे सवेरे” तुक) और यही तुक शेर को ग़ज़ल की माला का हिस्सा बनाता है।
आ) मिसरा
शे'र का एक पद जिसे हम उर्दू मे मिसरा कहते हैं। चलिये शे'र की चीर-फाड करें - हमने उदाहरण में जो शेर लिया था उसे दो टुकडो में बाँटें यानी –
पहला हिस्सा - कटी रात सारी मेरी मयकदे में
दूसरा हिस्सा - ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे
यहाँ दोनो पद स्वतंत्र मिसरे हैं।
थोडी और बारीकी में जायें तो पहले हिस्से यानी कि शे'र के पहले पद (कटी रात सारी मेरी मयकदे में) को 'मिसरा ऊला' और दूसरे पद (ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे) लाइन को 'मिसरा सानी' पारिभाषित करेंगे। हिन्दी में प्रयोग की सुविधा के लिये आप प्रथम पंक्ति तथा द्वितीय पंक्ति भी कह सकते हैं। प्रथम पंक्ति (मिसरा ऊला) पुन: दो भागों मे विभक्त होती है प्रथमार्ध को मुख्य (सदर) और उत्तरार्ध को दिशा (उरूज) कहा जाता है। भाव यह कि पंक्ति का प्रथम भाग शेर में कही जाने वाली बात का उदघाटन करता है तथा द्वितीय भाग उस बात को दूसरी पंक्ति की ओर बढने की दिशा प्रदान करता है। इसी प्रकार द्वितीय पंक्ति (मिसरा सानी) के भी दो भाग होते हैं। प्रथम भाग को आरंभिक (इब्तिदा) तथा द्वितीय भाग को अंतिका (ज़र्ब) कहते हैं।
अर्थात दो मिसरे ('मिसरा उला' + 'मिसरा सानी') मिल कर एक शे'र बनते हैं। प्रसंगवश यह भी जान लें कि “किता” चार मिसरों से मिलकर बनता है जो एक विषय पर हों।
इ) रदीफ
रदीफ को पूरी ग़ज़ल में स्थिर रहना है। ये एक या दो शब्दों से मिल कर बनती है और मतले मे दो बार मिसरे के अंत मे और शे'र मे दूसरे मिसरे के अंत मे ये पूरी ग़ज़ल मे प्रयुक्त हो कर एक जैसा ही रहता है बदलता नहीं। उदाहरण के लिये ली गयी ग़ज़ल को देखें इस में “ सवेरे सवेरे ” ग़ज़ल की रदीफ़ है।
बिना रदीफ़ के भी ग़ज़ल हो सकती है जिसे गैर-मरद्दफ़ ग़ज़ल कहा जाता है.
ई) काफ़िया
परिभाषा की जाये तो ग़ज़ल के शे’रों में रदीफ़ से पहले आने वाले उन शब्दों की क़ाफ़िया कहते हैं, जिनके अंतिम एक या एकाधिक अक्षर स्थायी होते हैं और उनसे पूर्व का अक्षर चपल होता है।
इसे आप तुक कह सकते हैं जो मतले मे दो बार रदीफ़ से पहले आती है और हर शे'र के दूसरे मिसरे मे रदीफ़ से पहले। काफ़िया ग़ज़ल की जान होता है और कई बार शायर को काफ़िया मिलने मे दिक्कत होती है तो उसे हम कह देते हैं कि काफ़िया तंग हो गया। उदाहरण ग़ज़ल में आया, आज़माया, लड़खड़ाया, सुनाया ये ग़ज़ल के काफ़िए हैं.
उ) मतला
ग़ज़ल के पहले शे'र को मतला कहा जाता है.मतले के दोनो मिसरों मे काफ़िया और रदीफ़ का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण ग़ज़ल में मतला है:-
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे
ऊ) मकता
अंतिम शे'र जिसमे शायर अपना उपनाम लिखता है मक़्ता कहलाता है.
ए) बहर
छंद की तरह एक फ़ारसी मीटर/ताल/लय/फीट जो अरकानों की एक विशेष तरक़ीब से बनती है.
ऎ) अरकान
फ़ारसी भाषाविदों ने आठ अरकान ढूँढे और उनको एक नाम दिया जो आगे चलकर बहरों का आधार बने। रुक्न का बहुबचन है अरकान.बहरॊ की लम्बाई या वज़्न इन्ही से मापा जाता है, इसे आप फ़ीट भी कह सकते हैं। इन्हें आप ग़ज़ल के आठ सुर भी कह सकते हैं।
ओ) अरूज़
बहरों और ग़ज़ल के तमाम असूलों की मालूमात को अरूज़ कहा जाता है और जानने वाले अरूज़ी.
औ) तख़ल्लुस
शायर का उपनाम मक़ते मे इस्तेमाल होता है. जैसे मै "अज्ञात" का इस्तेमाल करता हूँ।
अं) वज़्न
मिसरे को अरकानों के तराज़ू मे तौल कर उसका वज़्न मालूम किया जाता है इसी विधि को तकतीअ कहा जाता है।
उपरोक्त परिभाषाओं की रौशनी में साधारण रूप से ग़ज़ल को समझने के लिये उसे निम्न विन्दुओं के अनुरूप देखना होगा:
-ग़ज़ल विभिन्न शे'रों की माला होती है।
-ग़ज़ल के शेरों का क़ाफ़िया और रदीफ की पाबंदी में रहना आवश्यक है ।
गजल की जानकारी...
..ग़ज़ल:एक परिचय.. [Ghazal:Ek Parichay]
ग़ज़ल शेरों से बनती है। हर शेर में दो पंक्तियाँ होती हैं। शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल की खा़स बात यह है कि उसका प्रत्येक शेर अपने आप में एक सम्पूर्ण कविता होता है और उसका संबंध ग़ज़ल में आने वाले अगले,पिछले अथवा अन्य शेरों से हो ,यह ज़रुरी नहीं। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी ग़ज़ल में अगर २५ शेर हों तो यह कहना गलत न होगा कि उसमें २५ स्वतंत्र कवितायें हैं। शेर के पहले मिसरे को ‘मिसर-ए-ऊला’ और दूसरे शेर को ‘मिसर-ए-सानी’ कहते हैं।
1 मत्ला
2 क़ाफिया
3 रदीफ़
4 मक़्ता
#मत्ला
ग़ज़ल के पहले शेर को ‘मत्ला’ कहते हैं। इसके दोनो मिसरों में यानि पंक्तियों में ‘काफिया’ होता है। अगर ग़ज़ल के दूसरे शेर की दोनों पंक्तियों में का़फ़िया तो उसे ‘हुस्ने मत्ला’ या ‘मत्ला-ए-सानी’ कहा जाता है।
#क़ाफिया
वह शब्द जो मत्ले की दोनों पंक्तियों में और हर शेर की दूसरी पंक्ति में रदीफ़ के पहले आये उसे ‘क़ाफ़िया’ कहते हैं। क़ाफ़िया बदले हुये रूप में आ सकता है। लेकिन यह ज़रूरी है कि उसका उच्चारण समान हो, जैसे बर, गर, तर, मर, डर, अथवा मकाँ,जहाँ,समाँ इत्यादि।
#रदीफ़
प्रत्येक शेर में ‘का़फ़िये’ के बाद जो शब्द आता है उसे ‘रदीफ’ कहते हैं। पूरी ग़ज़ल में रदीफ़ एक होती है। ऐसी ग़ज़लों को ‘ग़ैर-मुरद्दफ़-ग़ज़ल’ कहा जाता है।
#मक़्ता
ग़ज़ल के आख़री शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं। अगर नाम न हो तो उसे केवल ग़ज़ल का ‘आखरी शेर’ ही कहा जाता है। शायर के उपनाम को ‘तख़ल्लुस’ कहते हैं।
ग़ज़ल शेरों से बनती है
और शेर मिसरों से,
शेर की पहली लाइन को "उला मिसरा"
और दूसरी लाइन को "सानी मिसरा" कहते हैं
शेर के बहुवचन को "अशआर" कहते हैं
ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं
इसके दोनों मिसरे में क़ाफिया होता है
एक से ज़्यादा मतला है तो उसे "हुस्ने मतला" या "मतला ए सानी"कहते हैं
क़ाफिया मत्ले की दोनों लाइनों में
और बाकी शेरों की दूसरी लाइन में, रदीफ़ से पहले आता है
इनका उच्चारण समान होता है
एक ध्वनि वाले या rhyming शब्द
जैसे सागर गागर भीतर बाहर
इन सबसे "अर" की एक सी ध्वनि है
आ सकेंगे या, उजाले जाएंगे |
फैसले अब , आजमाए जायेंगे |
यहाँ उला मिसरे में उजाले क़ाफिया है
पहली लाइन
उजाले काफिया
दूसरी लाइन
आज़माए
यानी यहाँ जो समान ध्वनि है वो "ए" स्वर है
तो यहाँ "ए" क़ाफिया होगा
मतलब क़ाफ़िया सिर्फ़ स्वर से भी हो सकता है
रदीफ़ भी
क़ाफ़िए की भाँति
मत्ले में दोनों पंक्ति के अंत में और शेर की दूसरी पंक्ति के अंत में आता है
ये वो शब्द या शब्द समूह है जो रिपीट होता है
ये किसी भी हाल में बदला नहीं जाता
आ सकेंगे या, उजाले जाएंगे |
फैसले अब , आजमाए जायेंगे |
यहाँ जाएँगे रदीफ़ है
अब मक़ता देखिए
ग़ज़ल के आखिरी शेर को, जिसमें शायर अपने तख्ल्लुस का इस्तेमाल करे, मक़ता कहते हैं
तखल्लुस यानी उपनाम
इन बेसिक टर्म के बाद नंबर आता है "बहर" का जो कि बेहद संजीदगी से समझने की ज़रूरत है ।
हर ग़ज़ल किसी न किसी बहर या मीटर पर लिखी हुई होती है
लेकिन उसके लिए मात्रा गिनना आना चाहिए ।
मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है , इसके निम्न
लिखित नियम हैं :-
(१) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है जिसे लघु कहते हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ
(२) दीर्घ स्वरों की मात्रा २ होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे-आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ
(३) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे -
.... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /
.... य,र,ल,व,श,ष,स,ह
(४) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार १ ही रहती है
(५) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार
.... २ हो जाता है
(६) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
.... जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११, गाँव=२१
(७) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार २ हो जाता है , जैसे -
.... रंग=२१ , अंक=२१ , कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२
(८) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
.... जैसे - नहीं=१२ , भींच=२१ , छींक=२१ ,
.... कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं,
(९) संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे - स्वर=११ , प्रभा=१२
.... श्रम=११ , च्यवन=१११
(१०) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,
..... जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११, श्रुति=११
(११) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
..... जैसे - भ्राता=२२ , श्याम=२१ , स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,
(१२) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
..... जैसे - नम्र=२१ , सत्य=२१ , विख्यात=२२१
(१३) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
..... जैसे - हास्य=२१ , आत्मा=२२ , सौम्या=२२ , शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.
(१४) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (१२) के कुछ अपवाद भी हैं , जिसका आधार
..... पारंपरिक उच्चारण है , अशुद्ध उच्चारण नहीं !
..... जैसे- तुम्हें=१२ , तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२,
..... कुम्हार=१२१, कन्हैया=१२२ , मल्हार=121
(15) अपवाद के उदाहरणों में अधिकांशतः संयुक्ताक्षर का परवर्ती अक्षर 'ह' होता है
..... किन्तु यह कोई नियम नहीं है जैसे कुल्हाड़ी=122
3)
मात्राभार गणना ( विस्तृत )
*********************
मात्रा आधारित छंदमय रचनायें लिखने के लिए मात्रा या मात्राभार की गणना का ज्ञान होना अति आवश्यक है ,,,,आओ इस ज्ञान- विज्ञान को जाने --
**१ मात्रा या मात्राभार को = लघु ,,,,२ मात्रा या मात्राभार को = गुरु कहते हैं ,,
**(१)*** हिंदी में ह्रस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ) की मात्रा १ होती है जिसे हम लघु कहते हैं
**(२)*** हिंदी में दीर्घ स्वरों (आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ,अं, ) की मात्रा लगने पर मात्राभार २ हो जाता है ,, जिसे हम गुरु कहते हैं.
**(३)*** हिंदी में प्रत्येक व्यंजन की मात्रा १ होती है,,,, जो नीचे दर्शाये गए हैं --- -
*** क,ख,ग,घ , *** च,छ,ज,झ,ञ ,
*** ट,ठ,ड,ढ,ण , *** त,थ,द,ध,न ,
*** प,फ,ब,भ,म , ***य,र,ल,व,श,ष,स,ह
जैसे---- अब=११, कल=११,, करतल =११११ ,,पवन १११ ,,मन =११ ,,चमचम=११११ ,,जल =११,,हलचल ११११,,दर =११,,कसक=१११,,दमकल =११११ ,,छनक =१११ ,दमक =१११ ,उलझन =११११ ,, बड़बड़ =११११,, गमन=१११ , नरक=१११ ,, सड़क=१११
**(४)*** किसी भी व्यंजन में इ , उ ,ऋ की मात्रा लगाने पर उसका मात्राभार नहीं बदलता अर्थात १ (लघु) ही रहता है-
दिन =१ १,निशि=११,,जिस=११, मिल=११, किस =११ , हिल =१११, लिलि =११,नहि =११,,महि =११ कुल=११, खुल=११, मुकुल =१११, मधु =११, मधुरिम =११११ , कृत =११, तृण =११, मृग=११,, पितृ=११,, अमृत=१११,, टुनटुन= ११११ ,, कुमकुम =११११ , तुनक =१११, चुनर =१११ ,ऋषि =११ ,, ऋतु =११,, ऋतिक =१११
**(५)*** किसी भी व्यंजन में दीर्घ स्वर (आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ ,अं,) की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार (दीर्ध) अर्थात २ हो जाता है.--
हारा=२२ ,,पारा=२२,, करारा =१२२,,चौपाया =२२२ ,,गोला =२२,,शोला=२२,,पाया =२२,,, जाय २१,,, माता =२२,,, पिता=१२,,, सीता= २२,, गई (गयी )=१२,, पीला =२२,,गए (गये )=१२, लाए (लाये) =२२, खाओ =२२, ओम =२१, और =२१,, ओकात =औकात =२२१,, अंकित २११, संचय =२११,पंपा ==२२,,मूली=२२,,शूली =२२,, पंप (पम्प ) =२१, अंग =२१ ,,ढंग =२१,, संचित =२११,, रंग=२१ ,, अंक=२१ , रंगीन =२२१, कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२, दंभ (दम्भ )=२१, पंच (पञ्च )=२१, खंड (खण्ड )=२१,सिंह =२ १ ,,,सिंधु =२ १ ,,,बिंदु =२ १ ,,,,पुंज =२ १ ,,,हिंडोला =२ २ २,,कंकड़ =२११,,टंकण =२११ ,,सिंघाड़ा =२२२ ,लिंकन =२११ ,,लंका २२ ,
**(६)*** गुरु वर्ण (दीर्घ) पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
जैसे - नहीं=१२ ,सीँच =२१, भींच=२१ , हैं =२,छींक=२१ ,दें =२, हीँग =२१, हमेँ =१२ , सांप =२१
**(८ )***शब्द के प्रारम्भ में संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे - स्वर=११ , ज्वर =११,प्रभा=१२
श्रम=११ , च्यवन=१११, प्लेट= २१, भ्रम =११, क्रम ११, श्वसन =१११, न्याय =२१,
**(९ )*** संयुक्ताक्षर में ह्रस्व (इ ,उ ,ऋ ) की मात्रा लगने से उसका मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,
जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११, श्रुति=११, क्लिक =१ १, क्षितिज =१११, त्रिया =१२ ,
**(१० )*** संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,(अर्थात कोई शब्द यदि अर्द्ध वर्ण से शुरू होता है तो अर्द्ध वर्ण का मात्राभार ० (नगण्य ) हो जाता है )--
जैसे - भ्राता=२२ , ज्ञान (ग्यान )=२१, श्याम=२१ , स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,श्री=२,
**(११ )*** संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,(अर्थात किसी शब्द के बीच में अर्द्ध वर्ण आने पर वह पूर्ववर्ती / पहलेवाले वर्ण के मात्राभार को दीर्घ/गुरु कर देता है )---
जैसे - अक्कड =२११,,बक्कड़=२११,,नम्र =(न म् र) =२१ , विद्या =२२, चक्षु (चक्शु ) =२१,सत्य=२१ , वृक्ष (वृक्श) =२१,यत्र (यत् र )=२१, विख्यात=२२१,पर्ण=(प र् ण ) २१, गर्भ=(गर् भ) २१, कर्म =क (क र् म) २१, मल्ल =२१, दर्पण =२११, अर्चना २१२,, विनम्र (वि न म् र) =१२१,,अध्यक्ष (अध्यक्श)=२२१
**(१२ )*** संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु / वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं आता है--
जैसे -प्राप्तांक =२२१ ,,प्राप्त =२१, हास्य=२१ , वाष्प =२१ ,आत्मा=२२ , सौम्या=२२ , शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.भास्कराचार्य ,,२१२२१ ,,उपाध्यक्ष (उपाध्यक्श)=१२२१
**(१३ )*** अर्द्ध वर्ण के बाद का अक्षर 'ह' गुरु (दीर्घ मात्रा धारक) होता है तो ,,,अर्द्ध वर्ण भारहीन हो जाता है जैसे ---
*********************************************************
तुम्हें=१२ , तुम्हारा=१२२, तुम्हारी=१२२, तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२, किन्होनें=१२२,,उन्होंने =१२२,,कुम्हार=१२१,, कन्हैया=१२२ ,, मल्हार=१२१ ,,कुल्हा =१२,,कुल्हाड़ी=१२२ ,तन्हा =१२ ,सुन्हेरा =१२२, दुल्हा ==१२,,अल्हेला =१२२ ,
💐🙏�आपकी सेवा
में🙏�💐
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