कोई हैरत नही तू बदल जाए
पत्थर की मूरत भी पिघल जाए
भावनाओ को ना यूँ समझ सका
दिल पता ना ऐसे मचल जाए
मेरे हालात मुझकों संभाले हुए
दिल के पास अपने बुलाले मुझे
सहर को मुद्दत से इंतज़ार रहा
कोई पास आकर जगा-ले मुझे
-आकिब जावेद
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